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भरतेश वैभव
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चरणमें पड़ती हों इस प्रकार उस समय भरत चक्रवर्तीकी शोभा प्रतीत हुई । उस समय महल में एकको नहीं, सबको एक उत्सवका दिन प्रतीत हुआ । उत्सव दिन भी कैसा ? विवाहोत्सव के समान हर्ष था । इसी आनंदमें उन सतियोंने किन्नरवीणा आदि लेकर अन्नदानकी महिमाको गाना प्रारम्भ कर दिया 1
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वे मुनिराज जब महलके अंदर जा रहे थे तब वे स्त्रियाँ दोनों तरफसे चामर द्वार रही थीं। सेवक के घर स्वामी आवे तो जिस प्रकार सेवक अनेक प्रकार भक्ति करता है, उसी प्रकार भरत चक्रवर्ती उन तपस्वियोंके अपने महल में आनेपर अनेक प्रकारसे अपनी स्त्रियोंसे युक्त होकर उनकी भक्ति करके अपनेको भाग्यशाली समझते थे ।
चक्रवर्तीने हमको नमस्कार किया इसका उन मुनिराजोंको कोई अभिमान नहीं आया, और न उन सुन्दरी रानियोंको देखकर ही मनमें कोई विकार उत्पन्न हुआ । वे अपने मनको आत्मा में दृढ़कर चक्रवर्तीके साथ गये ।
जिन योगियोंने अपने शरीरको भी तुच्छ समझकर आत्माकी ओर चित्त लगाया है भला कुछ बाह्यपदार्थोंको देखकर उनका मन विचलित हो सकता है ?
तदनंतर उन योगियोंके पादकमलोंका प्रक्षालन कर अमृतगृहमें पदार्पण कराया। उस घरमें कोई अन्धकार नहीं था । लोगोंको ऐसा मालूम होता था कि कहीं यह सूर्यका जन्मस्थान तो नहीं है ?
भरतेश्वरने वहाँपर उन योगियोंकी ऊँचा आसन दिया फिर अपनी धर्मपत्नियोंसे युक्त होकर भक्तिसे उनकी पूजा की। तदनंतर भक्तिपूर्वक आहारदान दिया ।
दातारोंमें चक्रवर्ती भरत उनम था और पात्रोंमें वे चारणमुनीश्वर उत्तम थे । इसलिये उत्तमपात्रों को सिद्धान्तशास्त्रोंमें प्रणीत विधिके अनुसार उत्तम दान दिया ।
दान के समय बाहर घंटा, वांद्य आदि मंगल शब्द होने लगे, क्योंकि चक्रवर्तीके आहारदानसंभ्रम सामान्य नहीं हैं ।
इस जगत् में जितने उत्तम पदार्थ हैं वे सब महल में हैं । इसलिये उनको किस बातकी कमी हो ज्ञानशील तपस्वियोंको उस चक्रवर्तीने अमृतान्न सचमुच में उस समय अनेक प्रकारके भक्ष्य वीर,
भरत चक्रवर्तीके सकती है ? उन
देकर तृप्त किया । शाक. पाक, फल