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भरतेश वैभव राजने अपने हाथके गंध, पुष्प, अक्षत आदिसे दर्शनांजलि देकर तदनंतर भावशुद्धिसे जलधारा दी। पश्चात् अत्यंत भक्तिपूर्वक तीन प्रदक्षिणा देकर उनको साष्टांग नमस्कार किया। तब कुछ लोग इधर-उधरसे आकर जयजयकार शब्द करते हुए कहने लगे कि चक्रवर्ती भरत यहाँ खड़े ध्यान कर रहे थे, इसलिये उस ध्यानके बलसे ये दोनों मुनि आ गये हैं।
भरत चक्रवर्ती जिस निधिको ले जानेको यहाँ आये थे वह निधि अब उनको मिल गई है। अब वे उस निधिको अपने महलमें बहुत सावधानीसे ले आ रहे हैं।
जिस प्रकार कामदेव हारकर उन मुनियोंसे प्रार्थना कर अपने घर ले जाता हो, उसी प्रकार बह नरलोकका कामदेव' उनको अपने महलमें ले जा रहा है। __जहाँ मुनियों को सीढ़ियोंमे उतरना पड़ता था बड़ाँ चना दनको अपने हाथका सहारा देता था, और जब वे ऊपर चढ़ते थे, तब भी बहुत भक्तिसे हाथ लगाते हुए कहने लगता था स्वामिन् ! आप लोग आकाशमें बिना महारे चलनेवाले हैं आपको अवलम्बनकी आवश्यकता नहीं है । यह केवल हमारा उपचार है |
यह भी जाने दीजिये । देखिए तो सही, जब हमारा महल इतना वक्र है तब हमारा हृदय कितना वक्र होगा? हमारा महल बक्र, हमारा मन वक्र, फिर भी आप इस शिष्यपर कृपा करके यहाँ पधारे हैं । इससे अब हमारा मन व महल दोनों सीध हो गये। __भरत चक्रवर्तीके धर्मविनोदको सुनते-सुनते मुनिराज मन ही मन प्रसन्न होने लगे । परन्तु कूछ बोले नहीं, क्योंकि उनकी दृढ प्रतिज्ञा थी कि भोजन करनेसे पहिले किमीसे नहीं बोलेंगे। फिर भी मनमें भरतकी भक्तिसे प्रसन्न होकर जा रहे थे।
इस प्रकार भय और भक्तिसे जिस समय उन योगियोंको वह चक्रवर्ती महलमें ले गया तब चक्रवर्ती की रानियाँ सामने आई । मुनियोंको देखते ही भक्तिसे सबको सब रोमांचित हो गई। तत्क्षण आरती उतारी । फिर सबने मुनिराजोंको साष्टांग नमस्कार किया। जिस प्रकार कामदेव दिगम्बर तपस्वियोंके प्रति स्पर्धा करके हार गया हो फिर वह उसी हारके कारण अपने महलमें लाकर अपनी स्त्रियोंसे भी हार स्वीकार कर रहा हो और इसीलिए स्त्रियाँ भी उन मुनिराजोंके