SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "४१४ भरतेश वैभव भरतेश्वरने बाहुबलिसे पुनः कहा कि भाई ! मल्लयुद्धको तो जरूरत ही क्या है ? पिताजीने तुम्हारा नाम ही भुजबली रखा है। वह असत्य किम प्रकार हो सकता है ? भुजबलम तम प्रबल हो, मुझ सहज उठा सकते हो ! गिताली ने मेरी म मामा है मैं भलभूमिका अधिपति हुआ । तुम्हारा नाम भुजवलि रखा है, तो भुजबलमे मुझे तम उठाओगे ही। - मंत्री-मित्रोंन विचार किया कि भरतेश्वर भाईको समझाने के लिए कह रहे हैं । भुजवलिका अर्थ चक्रवर्तीको जीतनेवाला है ? कदापि नहीं । केवल सुजानचिंतामणि सम्राट् अपने सहोदरको समझाने के लिए कह रहे हैं । जैसे वीर, मुवीर, अनंनवीर्य, मेरु, मुमेरु, महाबाहु आदि अनेक नामोंसे अलंकृत आदिप्रभुके पुत्र हैं। क्या उन सबका अर्थ भरनेश्वरको जीतनेवाले हैं ? छोटीसी उँगलीसे परसो सारी सेनाको जिसने उठाया, बड़े-बड़े पर्वतोंको सूखे पत्तके समान जो उठा सकता है, उसके लिए इस कामदेवको उठानेकी क्या बड़ी बात है ? सारी सेनाने मिलकर इनकी छोटीसी उँगलीको सीधी करने के लिए अपनी सारी शक्तिको लगाकर स्त्रींचा, परंतु ये तो अपने सिंहासनसे जरा हिले तक भी नहीं । सरकनेकी बात तो दूर । ऐसी अवस्थामें क्या यह कामदेवको नहीं उठा सकता है ? यह कैसी बात ? लाल स्त्रियोंको तृप्त करने का सामर्थ्य चक्रवर्तीमें है, कामदेवको केवल आठ हजार स्त्रियोंको तृप्त करनेका सामर्थ्य है। इमीसे स्पष्ट है, तथापि छोटे भाईको प्रसन्न करनेके लिए सम्राट इस प्रकार कह रहे हैं । विशेष क्या ? भरतेश्वर जो बत्तीस ग्रास आहार लेते हैं, उससे एक ग्रास प्रमाण पदरानी लेती है, पदरानी जो एक ग्रास लेती है उसे सारी सेना मिलकर लेवें तो भी पचा नहीं सकती है। फिर यह कामदेव उसे क्या ले सकता है ? वह आहार पर्वतप्राय नहीं है, दिव्यान है, उसमें दिव्यशक्ति है । ऐसी अवस्थामें भी उपर्युक्त बातें सम्राट्ने उसे समझाने के लिए कहा।। इस प्रकार सर्व सेनामें सब लोग आपसमें बातचीत कर रहे थे । भरतेश्वरने कहा कि भाई ! अब अपने मुखसे मैंने कहा कि मैं हार गया, तुम जीत गये, फिर अब क्रोध की क्या आवश्यकता है ? भाई ! हृदयको शांत करो। इस प्रकार भरतेश्वरने जब अपनी हार बताई, दशदिशाओंमें एकदम अंधकार छा गया। आगके बिना धूर निकला । क्यों नहीं ? मनरल सम्राट्को जब दुःख हुआ, ऐसा क्यों नहीं होगा ? सेना घबरा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy