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________________ भरतेश वैभव ४१३ देखकर छी थू कहे विना नहीं रह सकते। विशेष क्या ? तुम युद्धके लिए आये हो न? युद्धमें जय होनेकी अभिलाषा सवकी रहती है। सामान्य लोगोंके समान लड़ने की क्या जरूरत है ? तुम जीत गये मैं हार गया, जाओ। - भरतेश्वरके वचनको सुनकर मंत्री, मित्र, राजा, महाराजा आदियों ने कानमें उँगली देकर कहा कि यह क्या कहते हैं ? आपकी कभी हार है ? भरतेश्वरने उत्तरमें कहा कि आप लोग क्या बोलते हैं ! कामदेवसे कौन नहीं हारते हैं ! क्या हमने स्त्रियोंको छोड़ा है। मेरे भाईकी जो जीत है, वह मेरी ही जीत है । दूसरा कोई सामने आता तो बाए परसे उसे लात देता, आपलोग सब मेरे अंतरंगको जानते ही हैं। बाहुबलि की और फिरकर फिर कहा कि भाई ! उपचारके लिए तुम्हारी जीत है ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ | अच्छी तरह सुनो, तुम्हारी सामर्थ्यको मैं अच्छी तरह जानता हूँ । सर्व सेना सुने , उस तरह मैं कहता हूँ, सुनो। _ दृष्टियुद्ध में तुम्हारी जीत है । क्योंकि तुम मुझसे २५ धनुष्य प्रमाण अधिक हो। इसलिए तुम मुझे सरलतासे देख सकते हो, परन्तु मुझे ऊर्वदृष्टिकर तुम्हें देखना पड़ेगा, इसलिए मुझे कष्ट होगा। मेरी आँखें दुखेंगी। भरतेश्वरके इस कथनको सुनकर मन्त्री-मित्रोंने मनमें कहा कि सूर्य बिम्बके अन्दर स्थित जिन प्रतिमाओंके दर्शनको अपनी महलसे बैठेबैठे जो सम्राट् करता है, उस समय तो उसकी आँखें नहीं दुखती हैं तो २५ धनुष्य प्रमाणकी क्या कीमत है ? यह केवल भाईको समझानेके लिए कह रहा है। सूर्यकिरण तो आँखोंको चुभते हैं, तथापि आँखोंको वे बन्द नहीं करते ऐसी अवस्थामें अत्यन्त सुन्दर शरीरको देखकर आँखोंको कष्ट किस प्रकार हो सकता? यह भाईको खुश करनेकी बात है । अस्तु. __ भरतेश्वरने कहा कि भाई ! जलयुद्धमें भी तुम्हारी जीत है। क्योंकि तुम ऊंचे हो, मैं तुम्हारी छाती तक पानी फेंक सकता हूँ। मुझे तुम डुबा सकते हो ऐसी अवस्थामें मेरी हार उसमें भी हो ही जायगी समझे ? ___ मंत्री-मित्रोंने विचार किया कि भरतेश्वर यह क्या बोल रहे हैं ? अनेक इच्छित रूपोंको धारण कर आकाशपर भी पानी फेंकनेकी शक्ति मरतेश्वरमें है। २५ धनुषकी बात ही क्या है ? यह केवल उपचारके लिए कह रहे हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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