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ALLAHAN
भरतेश वैभव कर लंगा। उसे वैसा ही वक्ररूप खड़े होकर ही सुनने दो, मैं गंभीर अर्थको ही कहूँगा। तब मंत्री-मित्रोंने कहा कि बहुत अच्छा ! जरूर कहना चाहिए। तब सम्राट्ने निम्नलिखित प्रकार बाहुबलिसे कहा___ भाई ! नानजि ! आज नमो और ऑनसे युद्ध हो रहा है, इसके लिए कारण क्या है ? क्योंकि निकारण कोई राजा आपसमें युद्ध नहीं किया करते हैं। तुम्हारी कोई सम्पत्ति मैंने छीन नहीं ली है, मेरी सम्पत्ति तुमने नहीं छीनी है । पहिलेसे पिताजीने जिस प्रकार राजा व युवराज बनाया है, उसी प्रकार अपन रहते हैं । अच्छा ! कोई बात नहीं ! भाई-भाइयोंमें भी द्वेष होता है। परन्तु उसके लिए भी कुछ कारण होता है। क्या तुमसे कर वसूल करनेके लिए मैंने अपने दूतोंको तुम्हारे पास भेजा है ? तुम्हारे नगरको मेरे मनुष्य आ सकते हैं । तुम्हारी प्रजाओंकी मेरे नगरमें आनेपर मैंने अन्य जनोंके समान कभी भावना की थी? प्रजापरिवारों में इस प्रकार भिन्न विचार क्यों? मैंने बोलते हुए कभी तुम्हारे लिए अल्पशब्दोंका प्रयोग किया ? मेरी प्रजाओंमें किसीने उस प्रकारका व्यवहार किया ? कभी नहीं! केवल अपने भाईको देखने की इच्छासे उसे बुलाया तो इतना क्रोध क्यों ? तुम मेरे लिए क्या शत्रु हो? मैं क्या तुम्हारे लिए शत्रु हूँ? हम दोनों आदिप्रभुके पुत्र होकर इस प्रकार विचार करें तो यह आगे सब सामान्य लोगोंके लिए द्रोह-शासनको लिख देनेके समान हो जायगा। ____ कदाचिन् तुम मनमें कहोगे कि यह युद्धसे डरकर अब यहाँ बातें करने लगा है परन्तु ऐसी बात नहीं है। युद्ध तो करूंगा ही । पहिले अपने मनकी बात कहकर दोषको दाल रहा हूँ दूसरे कोई मेरे सामने युद्ध के लिए खड़े होते तो उनको लात मारकर भगाता । परन्तु भाई ! सोचो, सहोदरोंके युद्धको लोक पसंद नहीं करेगा। मैं तुमसे थोड़ा बड़ा हूँ, इसलिए मैंने तुमको अपनी सेनाकी तरफ बुलाया, तुम मुझसे बड़े होते तो मैं तुम्हारे पास आता । बड़े भाई के पास छोटे भाईका जाना लोककी रीत है । इसमें भाई ! तुम्हारा अपमान क्या है ? तुम और मैं दोनों खिलाड़ी है। ये सब सेनागण, राजा, मंत्री, मित्र आदि सबके सब तमाशा देखनेवाले दर्शक हैं। ___ लोकमें राजाओंको खिलाकर अपन लोगोंको तमाशा देखना चाहिए। परन्तु अपन ही तमाशा दूसरोंको दिखाते हैं। मुझे तुम जीतोगे तो क्या तुम्हें कीति मिल जायगी? तुम्हें मैं जीतूं तो क्या मुझे यश मिल सकेगा ? पन्नगनरसुरलोकके उत्तम पुरुष अपने व्यवहारको