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________________ ४१० भरतेश वैभव आपार रणांगण में खड़ा है। आगे क्या होना चाहिये। आज्ञा दीजिये। उत्तरमें भरतेश्वरने कहा कि मैं ही आकर सत्र कहूंगा आप लोग निश्चित रहें। स्वतः मौन धारण कर भरनेश्वर विचार करने लगे कि इसके साथ धर्मयुद्ध भी क्यों करू । इसके हाथ-पैर बांधकर छोटी माँके पास रवाना कर देता हूँ। ( पुनः विचार कर.) नहीं ! नहीं ! ऐसा करना उचित नहीं होगा। ___ इतनी सेनाके सामने अपने अपमानका अनुभव कर फिर वह घरमें नहीं ठहरेगा । दीक्षा लेकर चला जायेगा, इसका मुझे भय है। कोमल युद्धोंमें भी वह हार जायेगा तो वह दीक्षा लेकर चला जायेगा। मुझे पहिलेके सहोदरोंके समान इसे भी खोना पड़ेगा। इसलिये कोई न कोई उपायसे काम लेना चाहिये । अपने सामर्थ्य को दिखाने के लिए आजतक मेरे सामने कोई भी खड़े नहीं हुए परन्तु मेरा भाई ही खड़ा हुआ, ऐसी अवस्थामें इसे मारना भी उचित नहीं। अहितोंको जीतना भी उचित नहीं है । साहसियोंको कष्ट देना चाहिये, परन्तु अपने कुटुं म्बियोंके साथ द्रोह करना ठीक नहीं है। इस बाहुबलिकी मूर्खताके लिये मैं क्या करूं? इस प्रकार तरह-तरहसे भरतेश्वर विचार कर रहे थे । परमात्मन् ! इसके लिए योग्य उपाय तुम ही कर सकते हो। एकदम हँसकर गुरुकी कृपा है, समझ गया । ठीक है चलो। उसी समय पालकी लाने की आज्ञा हई, प्रस्थानभेरी बजाई गई, पल्लकीपर चढ़कर भरतेश्वर रवाना हुए । भरतेश्वरने उस ममय युद्धके लिए उपयुक्त वेषभुषाको धारण नहीं किया था। मालम हो रहा था कि उस समय विवाहके लिए जा रहे हैं। मंत्री-मित्रोंने प्रार्थना की कि स्वामिन् ! इस प्रकार जाना उचित नहीं है। बाहुबलि तो युद्ध के लिए लंगोटी कसकर खड़ा है, परन्तु आप ता इस प्रकार जा रहे हैं । हम जानते हैं कि आपमें शक्ति है। परन्तु शक्ति होनेपर भी युद्धके समयम युक्तिको कभी नहीं भूलना चाहिए। मोरको पकड़ना हो तो शेरको पकड़नकी तैयारी करनी चाहिए। तभी दूसरोंपर प्रभाव पड़ता है। तब उत्तरमें भरतश्वरन कहा कि आप लोग बिलकूल ठीक कहते हैं । परन्तु मुझे आज परमात्माने दूसरी ही बुद्धि दी है। इसलिए मैं इस प्रकार जा रहा हूँ। आप लोग कोई चिंता न करें । मैं किस उपाय से आज उसे जीतता हैं। देखियमा । मंत्री-मित्रोंने कहा कि हम अच्छी तरह जानते हैं कि आप जीतंगे हो, तथापि हमने प्रार्थना इतनी ही की कि युद्धसन्नद्ध होकर जाना
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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