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________________ ४०९ भरतेश वैभव तीसरा युद्ध मल्लयुद्ध होगा। इस युद्धमें आपसमें कुस्ती होगी। किसीको एक हायसे उठा लेंगे तो फिर युद्ध बन्द कर देना चाहिये । फिर कोई युद्ध नहीं होना चाहिये । स्वामिन् ! आप पुष्पबाणसे समस्त लोकको वशमें करते हैं, ऐसी अवस्थामें आपने कठिन खड्ग लेकर युद्ध किया तो लोक इसे अच्छी नजरसे नहीं देख सकते। इसलिए हमलोगोंने मृदुयुद्धका विचार किया है। आपका बाण, धनुष कोमल है, आप कोमल हैं, आपकी सेना कोमल है, फिर पत्थरके समान कठिनताकी क्या आवश्यकता है ? इसलिए हम लोगोंने यह कोमल विचार किया है । बाहुबलिने उत्तर में कहा कि मैं समझ गया कि आप लोग मेरे हितैषी हैं, जाइये मुझे मंजूर है। शीघ्र युद्धरंगमें भरतेशको उतरनेके लिए कहियेगा। बहुत सन्तोषके साथ वहाँसे सम्राट्के पास गये व सर्व वृत्तांत निवेदन किया। साथमें यह भी प्रार्थना की कि तीन धर्मयुद्धके सिवाय आगे कोई भी युद्ध नहीं हो सकेगा। इस बातका वचन मिलना चाहिये। पहिले भरतेशसे व बादमें बाहबलिसे इस बातका वचन लिया गया एवं यह भी निर्णय हुआ कि यदि कामदेव हार गया तो ब्रा भरतेशके चरणों नमस्कार करें। यदि भरतेशकी हार हुई तो बाहुबलि भरतेशको नमस्कार न कर वैसा ही पोदनपुरमें जाकर राज्य करें। सेनास्थलमें ढिंढोरा पीटा गया कि युद्ध दोनों राजाओंमें वैयक्तिक होगा। युद्ध में सेना भाग नहीं लेंगी। - सब लोग युद्धको देखनेके लिए खड़े हैं, आकाश प्रदेशमें व्यन्तर देवगण, विद्याधर वगैरह खड़े हैं। कामदेवके पक्षके राजा, महाराजा, कवि, विद्वान, वेश्या, ब्राह्मण वगैरह सब एक तरफ खड़े हैं। मंत्रीमित्रोंने जाकर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! युद्धकी तैयारी हो चुकी है, अब चलिये । बाहुबलिं उस समय हाथीसे उतरकर नीचे आया, वह दृश्य सूचित कर रहा था कि शायद बाहुबलि यह कह रहा है कि हाथी, घोड़ा आदि संपत्तिकी अब मुझे जरूरत नहीं, मैं दीक्षा लेनेके लिये जाता हूँ | गर्वगिरिके उतरने के समान उस गजरूपी पर्वतसे उत्तरकर वह कामदेव युद्धभूमिके बीच में खड़ा हुआ । मालूम हो रहा था कि एक पर्वत ही खड़ा है । छत्र, चामर आदि बाह्य वैभव व अपने शरीरके भी कुछ वस्त्र आभूषणोंको उतारकर युद्धसन्नद्ध होकर खड़ा हुआ । उस समय वह बहुत ही सुन्दर मालूम हो रहा था । _भरतेश्वरसे आकर मंत्री-मित्रोंने प्रार्थना की कि स्वामिन् ! बाहुबलि
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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