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________________ भरतेश वैभव ३९७ करें, मारी सेनाकी शक्ति लगानेपर भी ऊँगली सीधी नहीं होती है। आप लोग सबके सब जोरसे खींचके रखो, मैं इस तरफ स्त्रींचता हूँ तब क्या होता है देखें । भरतेश्वरने अपनी और जरा झटका देकर खींचा तो सबके सब मुँह नीचे कर गिरे। मालूम हो रहा था। शायद वे सम्राट्को साष्टांग नमस्कार ही कर रहे हैं। ४८ कोसमें व्याप्त सारी सेनाने शक्ति लगाई तो भी छोटीसी उँगली सीधी नहीं हुई । जब छोटी ऊँगली में इतनी शक्ति है तो फिर अँगूठेमें कितनी शक्ति होंगी, मुष्टि में कितनी होगी और सारे शरीरमें कितनी होगी ? सम्राट्की शक्ति अवर्णनीय है। भरतेश्वर मुसकराए, मंत्री-मित्रोंने समझ लिया कि वस्तुतः सम्राट के उँगलीमें कोई रोग नहीं है । यह तो बनावटी रोग है । तब उन लोगोंने कहा स्वामिन् ! दूमरोंसे यह रोग दूर नहीं हो सकता है। आन ही अब उपाय करें। तब उँगलीकी सांखलको हटाकर "गुरु हंसनाथाय नमः स्वाहा" कहते हुए उँगलीको सीधी कर दी । सब लोगोंने हर्षसे भरतेश्वरको नमस्कार किया। देवोंने पुष्पवृष्टि की। साढ़े तीन करोड़ बाजे एकदम बजे । सर्वत्र हर्ष ही हर्ष मच गया है। मंत्रीने निवेदन किया कि स्वामिन् ! आपने ऐसा क्यों किया? तब उसरमें भरतेश्वरने कहा कि रात्रिके तीसरे प्रहरमें उत्तरदिशाकी तरफ दो विद्याधरोंने आपसमें बातचीत की थी। उसके फलस्वरूप मुझे बतलाना पड़ा कि मेरी छोटी उँगली में कितनी शक्ति है ? इतनेमें दो विद्याधरोंने आकर साष्टांग नमस्कार किया । कहने लगे कि स्वामिन् ! हम अज्ञानवा बोल गये । हमें क्षमा करें। सब लोगोंको आश्चर्य हुआ । उन दोनों विद्याधरोंके प्रति तिरस्कार उत्पन्न हुआ। मंत्रीने कहा कि जब पुत्रोंको साँखल खींचनेसे रोका तभी मैं समझ गया कि यह बनावटी रोग है । व्यंतरोंने कहा कि हम लोग भूल गये। नहीं तो अवधिज्ञानको लगाकर देखते तो पहिले ही मालम हो जाता। इस प्रकार वहाँ तरह-तरहकी बातचीत चल रही थी । भरतेश्वरने कहा कि मंत्री ! सिर्फ दो व्यक्तियोंके आपस में बोलनेसे इन सारी प्रजाओंको दुःख हआ, अब जरा गड़बड़ बन्द करो, सबको इस सुवर्णकी साँस्खलको टुकड़ा कर बाँट दो। मन्त्रीने उसी प्रकार किया। रोनेवाले बच्चोंको जिस प्रकार गन्नेकी टुकड़ा कर बांट दिया जाता है उसी प्रकार थकी हुई सेनाको सोने की साँखलको टुकड़ा कर बाँट दिया गया । सब लोग प्रसन्न हुए। सब लोग गठरी बाँध-बाँध
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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