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करने के लिए कहा। अनेक मंत्रवादी आये। बड़े-बड़े यंत्रवादी आये । पहलवान लोग आये । निमित्तशास्त्री आये। खास सम्राट्के अंगवैद्य आये। सबने अपनी विद्याके बलसे उँगलीको सीधी करनेकी बात कही । लोकमें देखा जाता है कि गरीबकी बड़े भारी रोगके आनेपर उसके चिल्लाते रहनेपर भी उसके पास कोई नहीं आते। परन्तु श्रीमंत को बिलकुल छोटा-सा दर्द आनेपर बिना बुलाये वहाँपर लोग इकट्ठा होते हैं । यह स्वाभाविक है । __ मंत्रीने पूछा कि स्वामिन् ! इनमें से आप कौनसे प्रयोगको बन्द करते हैं । उत्तरमें भरतेश्वरने कहा कि औषध वगैरहकी आवश्यकता नहीं, उपायसे ही इसे सीधी करनी चाहिए । बुलाओ, पहलवानोंको बुलाओ, भरतेश्वरने कहा। तत्क्षण पहलवान लोग आकर सामने उपस्थित हुए। उनसे कहा कि तुम लोग इस उंगलीको पकड़कर खींचकर सीधी करो। कई पहलवानोन मिलकर खींचा तो भी सीधी नहीं हुई। भरतेश्वरने कहा कि डरो मत, जोरसे खींचो । वे पहलवान जोरसे उस उँगलीको खींचने लगे । तथापि वे उसे सीधी नहीं कर सके। भरतश्वरने जरा-सी उँगलीको ऊपर उठाया तो ये सबके सब चमगीदड़ के समान उंगली में झूलने लगे। सम्राट्ने कहा कि और एक उपाय है। एक साँखल डालकर खींचो, वैसा ही उन लोगोंने किया। उससे भी कोई उपयोग नहीं हुआ। भरतेश्वरने विश्वकर्माकी ओर देखकर कहा कि एक साँखल ऐसी निर्माण करो सारी सेनामें पहुँचे । वहाँ देरी क्या थी? उसी समय विश्वकर्माने उसका निर्माण किया। आशा हई कि सेनाके समस्त योद्धा इस साँखलको पकड़कर सारी शक्ति लगाकर खींचे कोई उपयोग नहीं हुआ। फिर कहा गया कि हाथी, घोड़ा आदि सबके सब लगाकर इस साँखलको खींचे । सम्राट्के पुत्र व मित्रोंने भी उसे हाथ लगाना चाहा, परन्तु भरतेश्वरने इशारोंसे उनको रोका । भरतेश्वरके हाथका स्पर्श होते ही बह लोहेकी साँखल सोनेकी बन गई । सारी सेना अपनी सारी शक्ति लगाकर उस सांखलको खींचने लगी। परन्तु भरतेश्वर अपने स्थानसे जरा भी नहीं हिले, छोटीसी उँगली भी सीधी नहीं हुई। जिस समय जोर लगाकर दे खींच रहे थे अपने हाथको जरा ढीला कर दिया तो वे सबके सब चित्त होकर गिर पड़े, भरतेश्वर गम्भीरतासे बैठे थे । मंत्रीसे कहा कि ये गिरे क्यों ? सबको उठने के लिए कहो । तब वे उठे। भरतेश्वरने कहा कि और एक उपाय