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भरतेश वैभव
३९५ उठवार आपसमें रात्रिको बिताने के लिए बातचीत करनेको प्रारंभ किया । उनमें निम्नलिखित प्रकार बातचीत हुई।
पहला -एक-एक बूंद मिलकर बड़ा सरोवर बनता है, एक-एक डोरी मिलाकर बड़ी रस्सी बनती है.। इसी प्रकार चक्रवर्तीकी भी महिमा बढ़ गई। यदि सेना नहीं हो तो यह भी एक सामान्य मनुष्य ही है। - दूसरा बिलकुल ठीक है; हाथी, घोड़ा आदि सेनाओंके संग्रहसे दुनियाको डराया। वस्तुतः शक्तिको देखनेपर इसमें क्या है ? हमारे समान ही एक मनुष्य है। __ इस प्रकार सेनाके आखिरके उत्तर कोनेपर उपर्युक्त प्रकार दो विद्याधर बातचीत कर रहे थे। उसे भरतेश्वरने सुन लिया । भरतेश्वर की कान बहुत तेज है । सूर्यविमानमें स्थित जिनबिंबका दर्शन जो अपनी महलकी छतसे खड़े होकर करते हैं, अर्थात् जिनके चक्षुरिन्द्रिय की इतनी दूरगति है तो उनके कर्णेन्द्रियके सम्बन्ध में क्या कहना ! भरतेश्वरने उस बातचीतको सुनकर मनमें विचार किया कि प्रातःकाल होने के बाद इसका उत्तर दूसरे रूपसे देना चाहिए।
नित्यविधिसे निवृत्त होकर भरतेश्वर दरबारमें आकर विराजमान हुए । दरबारमें उस समय मंत्री, मित्र राजा व प्रजावर्ग आदि सबके सब यथास्थान बैठे हुए थे। भरतेश्वरका मुख आज उदास दिख रहा है। बुद्धिसागर मंत्रीने विचार किया कि शायद भरतेश्वर बाहुबलिके बर्तावसे चिन्तित हैं। उसने निवेदन किया कि स्वामिन् ! आपने हम लोगोंको कहा था कि इस सम्बन्ध में चिन्ता मत करो, परन्तु आप चिन्ता क्यों कर रहे हैं ? तब उत्तरमें भरतेश्वरने कहा कि मैं बाहुबलिके सम्बन्ध में विचार नहीं कर रहा हूँ। आज एकाएक उँगलीका नस अकड़कर यह हाथकी उँगली सीधी नहीं हो रही है। यह कहते हुए अपने हाथकी छोटी उँगलीको झकाकर मंत्रीको बतलाया। लोकमें सबके शरीरमें, व्यबहारमें टेढ़ापन हो सकता है। परन्तु भरतेशके किसी भी व्यवहारमें एवं शरीरमें भी टेढ़ापन नहीं है। फिर आज यह उँगली टेढ़ी क्यों हुई है ? सबको आश्चर्य हुआ। मंत्री, मित्र आदि चिन्तामें पड़े । उन्होंने आकर हाथ लगाया तो भरतेश्वरने बड़ी वेदना हो रही हो इस प्रकारकी चेष्टा की। पुत्रोंने हाथ लगाया तो बड़ी ही दर्दभरी आवाज करने लगे। मंत्रीने राजवैद्योंको बुलाया, उसी समय सैकड़ों राजवैद्य एकत्रित हुए। उन्होंने जड़ी-बूटियोंके औषधसे उसे ठीक