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भरतेश वैभव रह सबके सब नमस्कार कर वहाँसे चले गये। अब बाहुबलिके पास गुणबसंतक आदि पाँच सज्जन थे । बाकी चले गये थे । कलकण्ठको आज्ञा दी कि उस दक्षिणांकको बुलाओ। कलकण्ठने दौड़कर बाहरके दरवाजेसे उसे बुलाया । दक्षिणांक वापिस लौटते हुए सोच रहा था नि शायद फिरसे बाहुबलिने सोचा होगा। मनमें थोड़ी पुनः शांति हई होगी। उसने आकर नमस्कार किया।
बाहुबलि .-"दक्षिण ! सुनो ! मैंने समझ लिया है कि तुम्हारे स्वामी अब मुझपर आक्रमण किये बिना नहीं जायगा। परंतु युद्ध यहाँपर नहीं हो, मैं ही जहाँपर आप लोग ठहरे हैं वहाँपर आ जाऊँगा। तुम्हारे स्वामीको षोडको जीतनेका गर्व है, उसे इस कामदेवके साथ दिखाना चाहता है। गरीबोंको जैसा फंसाया वैसी बात यहाँ नहीं है । यहाँ तो भुजबलिराजासे सामना करना है। इसलिये सेनाके साथ होशियारीसे रहनेके लिए कह देना । जाओ ! यह समाचार अपने स्वामीको सुनाओ ।' दक्षिणांक हाथ जोड़कर चला गया। मनमें सोच रहा था कि कर्मगति विचित्र है, मोक्षगामी पुरुषोंको भी वह कष्ट दे रहा है।
बाहुबलिने गुणवसन्तक आदिको आज्ञा दी कि चक्रवर्तीके मनुष्योंको मेरे नगरमें प्रवेश नहीं करने देना और स्वयं महलमें प्रवेश कर गया।
दक्षिणांकको वापिस बुलानेके बाद बाहुबलिका क्रोध शांत हुआ होगा और उसकी ओरसे कुछ आश्वासन मिलेगा इस आशासे बाहुबलिके मंत्री-मित्र आदि दक्षिणांकाकी प्रतीक्षा करते हुए बाहरके दरवाजेपर खड़े थे । दक्षिणने आकर समाचार सुनाया तो उन लोगोंने एक दीर्घनिश्वास छोड़ा। इतने में गुशवसन्तक भी वहाँ आया व कहने लगा कि मित्रों ! स्वामीके प्रज्वलित कोपाग्नि देखकर उनकी इच्छानुसार मैं बोला, आपलोग ख्याल न करें। तब सबने कहा कि तुमने बहुत अच्छा किया। तब मत्तकोकिलादियोंने कहा कि मूकोंके समान रहनेसे राजा क्रोधित होंगे, यह समझकर हम बोले और कोई बात नहीं थी । परन्तु हम लोगोंकी सम्मति तो तुम्हारे साथ ही है। लोकमें अन्न खानेवाले ऐसे कौन व्यक्ति होंगे जो बड़े भाईको नमस्कार करने के लिए नहीं कहेंगे। सभी लोग यही कहेंगे कि छोटे भाईका बड़े भाईको नमस्कार करना आवश्यक है । फिर बहुत खेदके साथ सब लोग कहने लगे कि दक्षिण ! हम लोग चाहते थे ये दोनों भाई एक साथ मिलकर