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________________ भरतेश वैभव दिखती है । मदोन्मत्त विटोंके साथ क्रीड़ा करके इनको भी मद चढ़ गया। अब किसी बूढ़े के साथ इनको कर देनाचाहिए । रसिकोंके साथ क्रीड़ा कर ये फल गई हैं । अब इन्हें जड़विट पुरुषों के साथ कर देना चाहिए। सभी स्त्रियाँ जिस प्रकार चुए थीं उस प्रकार चुप न रहकर मुझे ही जर आई है।ह ! ह ामदेव सना मुल? घर-घरमें सब अकलमंद हुए और मुझे विवेक सुझाने आए, मैं तो बिलकुल मुर्ख ही ठहरा । हा ! कामदेवका कर्म विचित्र है ! जिनसिद्ध ! हंसनाथ ! आप ही देखें । मैं अविवेक से चल रहा हूँ। ये सब विवेककी शिक्षा दे रहे हैं। इत्यादि प्रकारसे क्रोध भरे शब्दोंसे कह रहा था। उन स्त्रियोंके प्रति क्रोधित होनेपर मंत्री आदि भी उस समय उनसे कुछ बोलनेके लिए डर गये। सचमुच में मंत्री, मित्र आदिके ऊपर बाहुबलिको क्रोध चढ़ गया था। उसका फल उन स्त्रियोंको भोगना पड़ा । इस प्रकार उस समय उस सभामें सब जगह निस्तब्धता छा गई थी। सेनापति गुणवसन्तक भी सभी बातोंको सुनते हुए दूर बैठा था। बाहुबलिने उसकी ओर देखते हुए कहा कि गुणवसन्तक ! इधर मेरे पास आओ । दुर क्यों बैठे हो ? मेरी बातें नीतिपूर्ण हैं या बेकार हैं ? बोलो, तुम्हारा हृदय क्या कहता है ? उत्तरमें गुणवसन्तकने कहा कि स्वामिन् ! हाय ! आपके वचनोंके संबंध में कौन बोल सकता है ? वह बिलकुल निर्दोष है। राजांगको व्यक्त करते हुए ही आप बोले, उसमें व्याजोगका लेश भी नहीं था। स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरोंके शरणमें क्यों कर जा सकता है ? मारको सर्वश्रेष्ठ (महाराय) कहते हैं। यदि उसने दूसरोंकी आधीनताको स्वीकार कर लिया तो उसे महाराय कौन कह सकते हैं ? आपने बिलकुल ठीक कहा कि गुणके आधीन मैं हो सकता हूँ। किसीने पराक्रम दिखाया तो उसे मैं नमस्कार नहीं कर सकता। गुणिजन इसे अवश्य स्वीकार करेंगे। गुणवसंतकके वचनोंको सुनकर बाहुबलि प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे पास बुलाकर एक रत्नके पदकको इनाममें दिया और कहा कि तुमपर मेरों भरोसा है, जाओ। ममयको जानकर कलकण्ठ, मन्दमारुत, मलयमारुत, मत्तकोकिल आदियोंने भी कहा कि स्वामिन् ! आपके कार्यकी बराबरी कौन कर सकते हैं ? आप लोकमें सर्वश्रेष्ठ हैं । उनको भी इनाम मिल गया । बाहुबलिने दरबारको बरखास्त करनेका संकेत किया । सब लोग उठकर चले गये। कुछ भी नहीं बोलते हुए दक्षिणांक, मंत्री, मित्र आदि वो हो । बाकी सभी लोग व स्त्रियों, नौकर, चाकर वगै
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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