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________________ भरतेश वैभव ३६९ हमको संतुष्ट करें। हमलोगोंको उन्हें एकत्र देखनेका भाग्य नहीं है। तुमको बहुत कष्ट हुआ, अब जाओ। तुमने जो उपाय किया, मधुर वचनोंका प्रयोग किया उससे पत्थर भी पानी होता, परन्तु कामदेवका मन नहीं पिघला, तुम्हारा इसमें दोष नहीं है, दुःख मत करो ! अब मातुश्री सुनंदादेवी बाहुबलिको समझाएगी और क्रोध शांत होनेपर हमलोग भी समझाने की कोशिश करेंगे । यदि कोई अनुकूल वातावरण हुआ तो तुमको पत्र लिखकर सूचित करेंगे। नहीं तो मौनसे रहेंगे। अब तुम जाओ, हमें बहुत दुचा है कि तुम्हारे शट्टा मित्रोंका आदर करें। परन्तु अब हम कुछ भी नहीं कर सकते। क्योंकि तुम्हारा कुछ भी आदर हम लोगोंने किया तो बाहुबलि हमपर क्रुद्ध होंगे। इसलिए अब तुम यहाँसे चले जाओ । दक्षिणांक दुःखके साथ वहाँसे चला गया। पाठकों को आश्चर्य होगा कि यह दुष्ट कर्म मोक्षगामी पुरुषोंको भी नहीं छोड़ता है । जिस समय वह उदयमें आता है उस समय वस्तुस्थितिको विचार करने नहीं देता। कषायवासना बहुत बुरी चीज है। वह मनुष्यका अधःपतन कर देता है। ऐसे समयमें मनुष्यको विचार करना चाहिए। "हे परमात्मन् ! पुद्गल बोलता है, सुनता है पुद्गल, राग और द्वेष भी पुद्गल है। पुद्गलके लिए मनुष्य दूसरोंसे प्रेम व द्वेष करता है। इसलिए मेरे हृदयमें तुम सदा बने रहो ताकि मैं वस्तुस्थितिका विचार कर सकूँ। हे सिद्धात्मन् ! तुम सदा दूसरोंको निर्मल उपायको बतलानेवाले हो। आपने अनंतज्ञानसाम्राज्यको पाया है, अतएव निराकुलता बसी हुई है । आप ज्योतिर्मय तीन प्रकाशके रूपमें हैं। इसलिए मुझे सदा सद्बुद्धि दीजिएगा ताकि मुझे संसारमें प्रत्येक कार्य में विवेककी प्राप्ति हो।" बत लंबानभंगसंधि, -:: अथ कटकविनोदसंधि बाहुबलिके मंत्री-मित्रोंसे विदा होकर दक्षिणांक पोदनपुरके नगर से होते हुए सेनाकी ओर जाने लगा। स्वयं वह जिस कार्यके लिए आया था वह कार्य बिगड़नेके उपलक्ष्यमें उसे बहुत दुःख हुआ । इसलिए
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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