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________________ भरतेश वैभव वे भाग गये । राजन् ! विशेष क्या? हमारे राजा हिमवान् पर्वतकी उस ओर भी राज्यसाधनके लिये जा रहे थे, हम लोगोंने समझाकर रहित किया। उनके साहसको लोकमें सामना कौन कर सकते हैं ? यम, दैत्य, असुर कोई भी समर्थ नहीं है। लीलामात्रसे इस भूमिको वशमें कर लिया। आश्चर्य है ! पुष्पबाणसे तीन लोकको वश करनेवाला छोटा भाई, अपनी वीरतासे व सेवकोंसे राजाओंके मदको दूर करनेवाला बड़ा भाई, आप दोनोंकी बराबरी करनेवाले लोकमें कौन है ? आप लोग सर्व श्रेष्ठ हैं, यह कहनेकी क्या जरूरत है। आप लोगोंकी सेवा करनेवाले हम लोग भी उसी वजहसे लोकमें बड़े कहलाते हैं। मैं क्या गलत कह रहा हूँ? चक्रवर्ती व उनके भाई कामदेवकी बराबरी करने. वाले कौन है ? आप लोगोंकी चरणसेवासे हम लोग धन्य हुए । वहाँ बैठे हुए सभी लोगोंने कहा कि बिलकुल ठीक बात है । बाहुबलिने प्रणयचंद्र मंत्रीसे कहा कि मंत्री ! दक्षिणांकके चातुर्यको देखा ? किस प्रकार वर्णन कर रहा है। मंत्रीने उत्तर दिया कि स्वामिन् ! उसने ठीक तो कहा । " आप लोगोंमें जो गुण हैं, उमीका उसने वर्णन किया है । तुम बहुत दक्ष हो, उसी प्रकार तुम्हारे बड़े भाई भी श्रेष्ठ गुणोंसे युक्त हैं, इसमें उपचारकी क्या बात हुई ? तुम दोनों का वर्णन सूर्य चन्द्रके वर्णनके समान है । चक्रवर्तीके मंत्री व मित्रोंने भी तुम्हें आदरके साथ भेंट भेजा है। इसीसे उनके सद्गुणोंका पता लगता है। ___आजका दरवार बरखास्त करें और दक्षिणांकको आज विश्रांति लेने दीजिये । कल उसके आनेके कार्यका विचार करेंगे। इस प्रकार मंत्रीने कहा । बाहबलिने भी दक्षिणांकको रहने के लिए स्वतंत्र व्यवस्था व भोजन वगैरहके लिये आराम करनेकी आज्ञा दी। तब वे मंत्री, मित्र आदि कहने लगे कि जब हमारे घर हैं तब स्वतंत्र अलग व्यवस्था की क्या जरूरत है ? भरतेश आते तो आपकी महल में उतरते । उनके मित्र आते हैं तो उनको हमारे यहाँ ही उतरना चाहिये। ये कब आनेवाले हैं ? हमें इनका सत्कार करने दीजिये । इत्यादि उन मंत्रीमित्रोंने कहा । दक्षिणको सत्कार कर, उसके परिवारको भी सत्कार करने के लिए मंत्रीको आज्ञा देकर बाहुबलि दरबारसे महलकी ओर रवाना हुए । दरबारसे सभी चले गये। दक्षिणने पौदनपुरके मंत्रीके आतिथ्यको स्वीकार किया। वह विवेकी विचार कर रहा था कि ये मंत्री वगैरह मेरी तरह हैं, परंतु भुजबलि मात्र भिन्न विचारका है। देखें क्या होता है ?
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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