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________________ ३७८ भरतेश वैभव उनके पास कौन मांगने गये थे ? भेरीके शब्दको सुनकर वे स्वतः घबराकर आये और भक्तिसे भेंट समर्पण किया था। उन्होंने जो कुछ भी भेंटमें दिया उससे दुगुना-चौगुना तुम्हारे भाईने उनको दिया है । जिसके हाथमें चितामणिरत्न मौजूद है वह क्या किसी वस्तुकी अपेक्षा से दिग्विजयके लिये जाता है ? दुष्ट राजाओंको शिक्षा देकर निग्रह करने के लिये एवं शिष्टोंकी रक्षा कर अनुग्रह करनेके लिये गये । वस्तुओंकी बात ही क्या ? अपने स्वतःकी अनेक उत्तम कन्याओंको लाकर हमारे राजाके साथ उन लोगोंने विवाह किया। सवको उत्तम वस्तुको ही प्रदान किया। बाकी चीजोंका क्या कहना ? उनका भी भाग्य बड़ा है। कन्याओंके देनेके निमित्तसे सम्राटको महलको जाने योग्य हो गये ? यह सबको कहाँसे नसीब हो सकती है ? हमारे राजा को देखकर कितने ही चतुर हुए । कितने ही व्रती हुए । गतिमतिशून्य व्यक्ति गतिमतिको कर सुखी हुए। उसके शार, ससक साहित्य, संगीत आदिका कहाँतक वर्णन करें? सम्राटको देखनेपर जंगलके प्राणियोंके समान वे घबराकर चलते हैं। बहुतसे बुद्धिमान होकर उनके साथ ही रहते हैं। कितने ही लोग चले गये । इस प्रकार कामदेवके अग्रजका कहाँतक वर्णन करूं? बाहुबलि बीचमें ही कहने लगा कि क्या यह कहना कोई बड़ा भारी सामर्थ्य है कि दूसरे उसे देखकर चतुर बन गये। दूसरोंको चातुर्य सिखाना कोई शक्तिका काम है ? दक्षिणांक कहने लगा कि स्वामिन् ! मैंने उनके सद्गुणोंका वर्णन किया। अब उनकी सामर्थ्य की बात मुनिये। सामनेकी सेनाके ऊपर अधिक शस्त्रास्त्र चलानेकी उनको आवश्यकता ही नहीं पड़ी। एक ही बाणपर पूर्वसमुद्र के अधिपति महान् प्रभावशाली मागधामरको बुलाया। विजयाध पर्वतके बचकपाटको फोड़नेके लिए एक ही मार काफी हो गई थी, दूसरी बार हाथ भी लगाना नहीं पड़ा एकदम फट गया । अग्नि एकदम भड़क उठी। घोड़ेने १२ छलांग मारा । सम्राट जरा भी विचलित नहीं हुए। देवोंने पुष्पवृष्टि नहीं की। एक ही प्रहारसे विजयार्ध कम्पित हुआ । सब लोग घबराकर चिल्लाये । म्लेच्छोंने व विद्याधरोंने अपने आप लाकर भेंट दिया । घोर दृष्टि बरसाकर दो भूतोंने कष्ट देना चाहा। परंतु सम्राट्के सेवकोंने ही उनको मार भगाया। अंकमालाको लिखानेके लिये पहिलेके एक लेखको उड़ाते समय कुछ भूतोंने उपद्रव मचाना चाहा, परंतु अपने सेवकोंसे उनके दांत गिराये ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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