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________________ भरतेश वैभव देखियेगा । उसके ऊपर समवसरणके सौंदर्यको देखियेगा। स्वामिन् ! यह तीन लोकके लिए अद्भुत है । आप देखियेगा। भरतेश्वरको भी पत्रोंकी भक्तिपर प्रसन्नता हुई। अब वे प्रकट रूपसे कहने लगे कि बेटा ! मुझसे क्यों छिपा रहे हो। आप लोगों के मनके विषयको मैं समझ गया हूँ । अभीसे दीक्षा लेनेकी वात क्यों सोच रहे हैं । हम और तुम सब मिलकर दीक्षा लेंगे। इसमें गड़बड़ क्या है ? कुछ दिन भोगमें रहकर बादमें आप लोग दीक्षा लेवें । अभी गड़बड़ न करें । इतना कहनेपर पुत्रोंको मालम हुआ कि पिताजीको मालम हआ है। हम लोग पितासे बोलनेके लिये डर रहे थे। अब पिताजीने ही हमें संकोचसे दूर किया । हमने सोचा था कि इन लोगोंको धोखा देकर भाग आयेंगे। परन्तु अब उस तरह आना सहज नहीं है । इसलिए अन स्पष्ट बोलकर ही जाना चाहिए। __दोनों पुत्रोंने भरतेश्वरके चरणोंमें मस्तक रखकर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! हमारी तीव्र इच्छा है कि बाल्यकालमें ही दीक्षित होकर मुक्तिसाम्राज्यके अधिपति बनें। इसलिए आप कृपाकर अनुमति दीजिये। इस बातको सुनकर भरतेश्वरका हृदय कंपित हुआ। आँखोंमें पानी भरकर आया। "बेटा ! मुझसे रहा नहीं जायगा। आप लोग इस प्रकारका विचार बिलकुल न करें। मेरी रक्षा करे' इत्यादि रूपसे कहते हुए भरतेश्वरने इन दोनों पुत्रोंको आलिंगन दिया। पुनश्च कहने लगे कि बेटा ! आप लोग यदि नहीं हो तो मेरी सम्पत्ति किस कामको ? मुझे कष्ट पहुँचाना क्या आप लोगोंका धर्म है। इतनी गड़बड़ी क्या है ? हम तुम सब मिलकर दीक्षा लेंगे। इस समय ठहर जाओ। उत्तरमें दोनों पुत्रोंने कहा कि स्वामिन् ! आपको क्या पुत्रों की कमी है? हजारों पूत्रोंमेंसे हम दोनोने यदि दीक्षा लेकर घमको परास्त किया तो क्या वह कीर्ति आपके लिये ही नहीं होगी? भरत-चेटा ! मुझे उस कीर्तिकी आवश्यकता नहीं। यह कीति ही पर्याप्त है । तुम सुखसे चार दिन रहो यही मैं चाहता हूँ। पुत्र-पिताजी उस दुष्ट यमके बीच में रहनेसे क्या प्रयोजन ? हम लोगोंको आप आज्ञा दीजियेगा । भरत-बेटा ! वह यम अपनेको क्या कर सकता है ? आप लोग इसी भवसे मुक्तिधामको प्राप्त करनेवाले हैं। भगवान् आदिप्रभुके उपदेशको इतना शीघ्र भूल गये। यदि तुम लोग तद्भव मुक्तिगामी नहीं तो तुम्हारे कार्यको मैं नहीं रोकता परंतु इसी भवसे मुक्ति जाना
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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