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भरतेश वैभव
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उस समय उन छोटे पुत्रोंमें दो पुत्र मौनके साथ जा रहे हैं। उनका नाम जिनराज और मुनिराज है। उन्होंने जबसे तीर्थंकर परमेष्ठीका दर्शन किया है तबसे उनके चित्तमें दीक्षा लेनेकी भावना हो गई है । परन्तु पितासे बोलनेके लिये डर लग रही है। इसलिये बड़े विचारसे मौनसे जा रहे हैं । मनमें विचार कर रहे हैं कि अब कल ही हमारे भाइयोंके समान हमारा विवाह पिताजी करेंगे। इसलिये इस झंझटमें पड़ने के बजाय बाल्यकालमें ही दीक्षा लेना उचित है। हमें दीक्षा प्रदान करो इस प्रकार हमारे दादा श्री आदिप्रभुके चरणोंमें हम प्रार्थना करते । परन्तु हमारे पिताजी व भाई लोग नहीं छोड़ते। अब क्या उपाय करना चाहिये | धन्य है ! पुण्यजीवियोंका विचार बाल्यकाल में हो परिपुष्ट रहता है।
अभी प्रयत्न करनेपर किसी भी तरह ये लोग हमें भेज नहीं सकते हैं। इसलिये इनके साथ चुपचाप अभी जावें । बादमें जब घरपर पहुँचेंगे तब किसी तरह इनको बिना कहे चले आयेंगे, फिर दीक्षित होंगे। इस विचारसे दोनों पुत्र उनके साथ मीनसे जा रहे हैं ।
मभी लोग सेनास्थानकी ओर देखते हुए जा रहे हैं। परन्तु ये दोनों पुत्र कैलासकी ओर देखते हुए जा रहे हैं। भरतेश्वरने देखा ! उनको दोनों पुत्रोंका अंतरंग मालूम हुआ कि दीक्षा लेनेकी भावनाले ये लोग इस प्रकार विकल हो रहे हैं। तथापि उसे छिपाकर कहने लगे, कि बेटा जिनराज ! मुनिराज ! आप लोगों को क्या हुआ ! सब लोग बहुत आनन्दके साथ जा रहे हैं। आप लोग क्यों मौनधारण करके बैठे हो ! इसका कारण क्या ? क्या माताका स्मरण हुआ ? या कैलासपर चढ़नेसे कुछ शरीरमें दर्दवर्द हो गई ? क्या बात है ? आप लोग मौनसे क्या विचार कर रहे हैं। बोलो तो सही । तब उन पुत्रोंने कहा कि पिताजी ! आपके साथ होते हुए माताजीकी याद क्योंकर हो सकती है ? क्या मालुश्री आपसे भी अधिक हैं क्या जिनेन्द्र के समवसरणमें जानेपर शरीरमें आलस्य आ सकता है ? कभी नहीं । आप और भाई बगैर बोलते हैं । उसे हम सुनते जा रहे हैं । इतनी ही बात हैं और कुछ नहीं ।
पुनः भरतेश्वर कहने लगे कि फिर आप लोग आगे नहीं देखकर पीछे की ओर देखते हुए क्यों जा रहे हैं। तब वे कहने लगे कि हम लोग इस कैलासकी शोभाको देख रहे हैं और मनमें सोच रहे हैं कि इस पुष्यशैलका दर्शन फिर कब होगा ? जरा इस पर्वतकी शोभाको