SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ भरतेश वैभव तेश्वरने उत्तरमें कहा कि स्वामिन ! यहाँपर रहने के लिये न कहकर आप जाने के लिए क्यों बोल रहे हैं ? आपको तो यहां रहने के लिए आदेश करना चाहिये। वृषभसेनस्वामीने कहा कि भरतेश ! हम जानते हैं। तुम कहीं भी रहो । तुम्हारी आत्मा यहीं पर रहती है। इसलिये जाओ। तब भरतेश्वरने 'अगर ऐसा है तो मैं आपकी आज्ञाका उल्लंघन क्योंकर करूं? मैं जाता हूँ'' ऐसा कहते हुए अपने पुत्रोंके साथ वहाँसे प्रस्थान किया । वहाँसे निकलते समय एक दफे पुन: आदिप्रभुका दर्शन "भूयात्पुनदर्शन" मंत्रके साथ किया। तदनंतर वृषभसेनाचार्य, अनंतवीय, विजय, वीर, सुवीर, अच्युताय इस प्रकार छह गणधरोंकी वंदना की। तदनंतर कच्छयोगी, महाकच्छयोगीको नमस्कार किया। बादमें बाकीके मुनिसमुदायको नमस्कार किया । देवेन्द्र के साथ प्रेमवार्तालाप किया । देवेन्द्र कहने लगा कि भरतेश ! कौनसे पूण्यके फलसे तुमने इन सुन्दर पूत्रोंको प्राप्त किया है ? देवलोक में भी इस प्रकारके सौंदर्य धारण करनेवाले नहीं हैं । तुम्हारी संपत्ति अद्भुत है। एक दो पुत्र नहीं, सभी तुम्हारे समान ही परम सुन्दर हैं। तुम्हारे भाग्यकी बराबरी लोकमें कौन कर सकता है ? उत्तरमें भरतेश्वर लघुता बतलाते हुए कहने लगे कि क्या सुन्दर हैं ? स्वर्गके देव इनसे हजारों गुण अधिक सुन्दर रहते हैं । तब देवेंद्र कहने लगे कि आप लोग आदिप्रभके वंशज हैं। इसलिये विनयगुण भी आपमें अत्याधिक रूपसे विद्यमान है । आपकी निरहंकारवृत्ति प्रशंसनीय है। इस प्रकार देवेन्द्र के साथ वार्तालाप कर नागेंद्र आदियों के साथ भी वोलते हुए चक्रवर्ती बाहर निकले । जाते समय द्वारपालकोंको उन्होंने रत्नहारादिकाको इनाममें दिये । समवसरणसे बाहर निकलकर विमानोंपर चढ़कर सेनास्थानकी ओर जाने लगे। एक विमानमें स्वयं सम्राट व दूसरे विमानमें एक हजार प्रौढ पुत्र व तीसरे विमानमें दो सौ छोटे पुत्र बैठे हुए जा रहे हैं । सोलह हजार गणबद्ध देव भी साथमें हैं । सभी पुत्रोंके मुखमं इस समय समवसरणकी चर्चा है । आदिप्रभुके अपूर्व दर्शनके संबंध में अनेक प्रकारसे हर्ष व्यक्त करते हुए सभी पुत्र जा रहे हैं । कभी पिताके साथ समवसरणके विषयमें बोल रहे हैं । भरतेश्वरके कहने पर आनंदसे सुनते हैं। हँसते हैं। लोकविस्मय करनेवाली तीर्थकर प्रभुकी महिमाको देखकर मन-मनमें फूल रहे हैं। इस प्रकार सब लोग जिस समय बहुत आनन्दके साथ जा रहे थे,
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy