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अरतेश पर
३४ पुत्रोंके साथ विवाह कर देंगे। फिर तो संतोष होगा। चक्रवर्तीसे कन्या माँगनेके लिये संकोच हो रहा था। इस बहा भरतेशके मुखसे ही स्वीकार करा लिया। सबको हर्ष हुआ। फिर उन देवियोंने कहा कि जैसी भाई की इच्छा हो वैसा करें । हमें तो कबुल है। सब जगह विवाह मंगलकी जयजयकार होने लगी।
सबका यथायोग्य सत्कार कर सम्राट्ने उस दिन अपने-अपने स्थानोंमें भेजा, दूसरे दिन की बात है।
सेनास्थानमें विवाहमंगलकी तैयारी होने लगी। जहाँ देखो वहीं आनंद हो रहा है । चक्रवर्तीके पुत्रोंका विवाह ! यह किस वैभवके साथ हुआ, इसके वर्णन करनेकी आवश्यकता नहीं । भरतेश्वरने किसी बात की कमी नहीं रखी। नमिराजने अपने नगरमें जब भरतेश्वरकी ओरसे मंत्री आदि गये थे उस समय १६ दिन पर्यंत जो सत्कार वैभव किया था उसने दुगुना चौगुना वैभव सम्राट्ने इस विवाह मंगलके समय किया। जिनेन्द्रपूजा, समस्त सेनाको मिष्टान्न, भोजन, द्विजदान वसन्तोत्सव आदिसे सर्व नरनारी तृप्त हुए। सभी पुत्रोंका विवाह संस्कार विधिके अनुसार बहुत वैभवके साथ संपन्न हुए। कंजाजी नामक कन्याका विवाह अर्ककीर्ति कुमारके साथ, गुणमंजरीका आदिराजके साथ, कुंजरवतीका विबाह वृषभराजके साथ हुआ। इसी प्रकार गमनाजीका संबंध हंसराजके साथ, मनोरमाका रत्नराजके साथ, योग्य गुण और रूपको देखकर विवाह हुआ। भरतेश्वरके बारह सौ पुत्र थे, उनमें दो सौ पुत्रतो अभी वयसे विवाह योग्य नहीं थे। इसलिए उन दो सौ पुत्रोंको छोड़कर बाकी हजार पुत्रोंका विवाह हुआ। पुत्रियों में कुछ नमिकी थीं और कुछ विनमिकी थीं। कुल मिलकर १००० पुत्रोंका १००० कन्याओंके साथ संबंध हुआ। इसी प्रकार भन्ने अपनी ५०० पुत्रियोंका भी विवाह उसी समय किया । कनकराजाके साथ कनकावतीका, कान्तराजके साथ मनुदेवीका, शांतराजके साथ कनकपद्मिनीका विवाह हुआ । इसी प्रकार नलिनावती कुमुदाबती, रत्नावली, मुक्तावली आदि लेकर पाँचसौ कन्याओंका विवाह हुआ। सिर्फ एक मधुराजी नामक एक छोटी कन्या रह गई जिसके प्रति भरतेश्वरका असीम प्रेम था । चार सौ कन्याओंका विबाह नमि-विनमि पुत्रोंके साथ व सौ कन्याओंका विवाह प्रतिष्ठित विद्याधर पुत्रों के साथ हुआ। इस प्रकार सम्राट भरतेश्वरने अपने हजार पुत्रोंका, ५०० पुत्रियोंका विवाह बहुत वैभवके साथ किया।