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________________ ३४४ भरतेश वैभव शपथ डाल दिया, फिर मैं झूठ कैसे बोल सकता हूँ? आपको भी सत्य बातको स्वीकार करना चाहिये। रविचंद्रा पासमें खड़ी थी । भरतेश्वरने प्रश्न किया कि रतिनंद्रे ! आज हमारे पत्रोंने अपने मामाके पक्षको क्यों ग्रहण किया ? रतिचंद्राने कहा कि वे मामाकी बेटियों को देखकर प्रसन्न हो गये हैं । इसलिए उनके तरफ देखकर ऐसा बोले होंगे । भरतेश्वरने भी कहा कि बिलकुल ठीक है । परन्तु इनको सोचना चाहिए था नमिराज कुछ सीधासाधा उनकी कन्याओं को देनेवाला नहीं है । मेरे मामा की पुत्रीको भूसक लिए उसने कितनी बात बनाई थीं, आप लोग क्या नहीं जानते हैं ? इसी प्रकार मेरे पुत्रोंको भी कन्या यह सीधा नहीं दे सकता है। फिर मेरे पुत्रोंने व्यर्थ उसके पक्षका समर्थन क्यों किया ? तब नमिराजने कहा कि राजन् ! आप विशेष विचार मत करो। आपके पुत्र जो मेरे भानजे हैं उनको मैं अपनी कन्याओंको देता हूँ। आप कोई संदेह मत करो। भरतेश्वरने सोचा कि मेरे कार्यकी सिद्धि हुई । नमिराज भी क्यों नहीं कन्याओंको देगा ? उन पुत्रोंके रूपको देखकर प्रसन्न हुआ। विवानपुण्यने उसे मुग्ध किया। नमि-विनमिकी देवियोंको भी यह सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। क्योंकि वे सब यही तो चाहती थीं। सम्राट्ने नमिराजसे कहा कि देखा! साक्षात् पिता होते हुए भी मेरे पक्षको ग्रहण कर बात नहीं की। केवल मोक्षमार्ग जो है, उसीको उन्होंने कहा है। इसीसे उनकी सत्यप्रियता मालम हुए विना नहीं रह सकती । कच्छराजके वहिनके स्वच्छ गर्भ में उत्पन्न इस भरतके पुत्र स्वेच्छाचार-पूर्वक नहीं बोलेंगे, इस प्रकार भरतेश्वरने जोर देकर कहा । देखो वे कितने सुन्दर हैं। श्री भगवान् आदिनाथ स्वामीके पौत्रोंका वर्णन मैं क्या करूँ ? नमिराज ! परमो तुमने ही कहा था कि अब अधिक कन्या हम नहीं देना चाहते। आज तुम स्वतः देनेके लिये कबूल कर रहे हो । मेरी इच्छा तृप्त हुई । मैं यही चाहता था। नमिराज भी कहने लगा कि मेरी भी इच्छा पूर्ण हई। गंगादेव सिंधुदेवने भी उन सब पुत्रोंको आशीर्वाद दिया। कहने लगे कि इनके कारणसे आज हमारा आत्म विश्वास दृढ़ हुआ। उपस्थित सर्व पुत्रों को व दामादोंको सम्राट ने उचित सन्मान कर वहाँसे भेजा और इस संबंधमें अपने बहिनोंका क्या अभिप्राय है। यह पूछा। बहिनोंने कहा कि यह हमें पसंद तो है । परन्तु पुत्रियोंके प्रति हमारा बड़ा ही प्रेम है । उनके वियोगको हम कैसे सहन कर सकती हैं ! तब भरतेश्वरने कहा कि तुम्हारी पुत्रियोंसे हमारे पुत्रोंका विवाह होगा तो मेरी पुत्रियोंका तुम्हारे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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