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भरतेश वैभव
आ रहे हैं उनसे भी पूछेंगे। वे क्या कहते हैं, देखें। इतनेमें पुरुराज व गुरुराज नामक दो पुत्र आये। उनसे भरतेश्वरने प्रश्न किया । तब उन लोगोंने यही कहा कि मामाजी जो बोलते हैं वह सही है । परन्तु भरतेश्वर कहते हैं कि मैं उसे नहीं मानता। श्रीराज माराज नामक दो पुत्र आये। उनसे पूछनेपर उन्होंने भी वही उत्तर दिया । बस्तुराज, वर्णराज, देवराज, दिव्यराज, मोहनराज, बावन्नराज आदि एक हजार दो सौ पुत्रोंसे प्रश्न किया, सबका उत्तर वही रहा। हंसराज, रत्नराज, महांशुराज, संसुखराज व निरंजनसिद्धराज नामक पाँच पुत्रों को पूछा, उन्होंने भी वही कहा। इतनेमें अर्ककीर्ति, आदिराज, वृषभराज आये। उन लोगोंने पिताजी व मामाको नमस्कार कर योग्य आसनको ग्रहण किया । भरतेश्वरने प्रश्न किया कि बेटा ! मेरे व तुम्हारे मामा के बीच एक विवाद खड़ा हुआ है उसका निर्णय आप लोगोंको देना चाहिये | अति आदि कुशल पुत्रोने कहा कि आप और मामाजीके विवादमें हाथ डालनेका अधिकार हमें नहीं है । आप लोग आदिभगवंत की दरबार में जा सकते हैं। वहीं सब निबटारा हो जायगा । तब सम्राट्ने कहा कि मामूली बात है । तुम लोग सुनो तो सही । बेटा ! मुक्तिके लिए आत्मधर्मकी क्या आवश्यकता है? क्या व्यवहार या बाह्यधर्म ही पर्याप्त नहीं है ? यह नमिराज कहता है कि स्थूलधर्मसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है, आत्मधर्मसे मुक्तिकी प्राप्ति होती है। तुम लोगों का क्या मत है ? बोलो ! तब वे पुत्र आश्चर्यचकित हुए । मनमें सोचने लगे कि हमेशा पिताजी हमें कहा करते थे कि मुक्तिके लिए आत्मानुभव ही मुख्यसाधन है । आज मात्र उलटा बोल रहे हैं । इसका कारण क्या है ? तब पुत्रोंके संकोचको देखकर भरतेश्वर कहने लगे कि आप लोग संकोच मत करो, जो सच है उसे बोलो। पुनः उनको संकोच हो रहा था । अर्ककीर्तिसे पुनः कहा कि घबराओ मत ! मेरा शपथ है । तुम संकोच मत करो। जो तुम्हें मालूम है निस्संदेह कहो तब अर्ककीर्तिने कहा कि पिताजी इसमें सौगंध खिलानेकी क्या जरूरत है । मामाजी बिलकुल ठीक कह रहे हैं। आपको भी यह मंजूर होना चाहिये । अर्ककीर्तिकी बातको सुनकर चक्रवर्ती कहने लगे कि बेटा ! मैंने सोचा था कि तुम्हारे भाइयोंने मामाके पक्षको ग्रहण किया तो भी तुम तो मेरे ही पक्ष में रहोगे । परन्तु तुमने भी मामाके ही पक्षको ग्रहण किया । अस्तु, तुम्हारी मर्जी । उत्तरमें अर्ककीति कहने लगा कि, पिताजी! आपने
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