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भरतेश वैभव
आश्चर्यचकित हुआ। मनमें सोचने लगा कि बीचमें जहाँ मुक्काम किया है वहाँ इसकी यह हालत है, तो फिर इसकी साक्षात् नगरीमें क्या होगी? सचमुचमें यह भाग्यशाली है। साक्षात् देवेन्द्र भी इसकी बराबरी नहीं कर सकता है। प्रत्यक्ष देखे बिना कोई बात मालूम नहीं होती है । मैंने व्यर्थ ही गर्व किया। इसकी संपत्तिको देखते हए मुझे धिक्कार होना चाहिये । "कूलमें मैं इससे कम नहीं हैं।" इस गर्बसे मैं अभीतक बैठा रहा। क्या मैं इसकी बराबरी कर सकता है ? इसके साथ मैंने व्यर्थ ही छल किया। अब मैं अपनी बहिनको जल्दी ही उसे देकर विवाह कर दंगा । मेरी बहिनका भाग्य भी अप्रतिम है । इत्यादि विचारसे नमिराजका मस्तक भरने लगा। यशोभद्रादेवी भी अपने दामादके भाग्यको विमानसे ही देखकर फूली नहीं समाती थीं। __ नमिराज विमानसे उतरकर चक्रवर्तीकी महलकी ओर आ रहा है । चक्रवर्तीने भी उसके स्वागतके लिए मन्त्री आदि प्रमुख पुरुषों को भेजे । जहोंने जाकर बहुत सन्तोषके साथ नमिराजका स्वागत किया। नमिराजका सबके साथ बहुत हर्षसे महलकी ओर आ रहा है । वह भी पर सुभा है, बचत नाम है। दूसरे चक्रवर्तीको देखा, दरबार में प्रवेश किया।
क्षेत्रधारी लोग भरतेश्वरसे कह रहे हैं कि हे राजाधिराजा मार्तण्ड ! देखियेगा नमिराज पासमें आ रहे हैं। आपके मामाके पुत्र नमिराज आ रहे हैं। सम्राट्ने गायन वगैरह बन्द कराकर इस ओर देखा । नमिराजने अनेक भेंटोंको समर्पण कर चक्रवर्तीको नमस्कार किया । सम्राट्ने हर्षके साथ उसे आलिंगन दिया व अपने सिंहासनके साथ ही दसरा एक आसन दिया। उसपर नमिराज बैठ गया। बाकीके लोगोंको भी उचित आसन दिए गये। बादमें सम्राट् कहने लगे कि नमिराज ! बहुत दिनके बाद तुम्हारा दर्शन हुआ, आज हमें हर्ष हो रहा है। उत्तरमें नमिराज कहने लगा कि भावाजी ! आप यह क्यों कह रहे हैं कि मैं बहुत समयके बाद देखनेको मिला, प्रत्युत् मुझे बहुत काल बाद भाग्यसे आपका दर्शन मिला । सचमचमें उस समय नमिराजका हर्षसागर उमड़ पड़ा था। कारण सम्राट्ने ससे राजा शब्दसे सम्बोधन किया था । क्यों नहीं ? उसे हर्ष होना साहजिक है । उसका मासन छोटा होनेपर भी यह मान छोटा नहीं था।
मरतेश्वर-नमिराज ! तुमने मुझे देखनेकी इच्छा नहीं की, परंतु