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________________ ३२० भरतेश वैभव स्वीकार करें। इस बातको सबने स्वीकार किया। तदनंतर हिमवंत, मागधामर आदि व्यंतरदेवोंका उन्होंने सत्कार किया । तदनंतर महलके अंदर चंद्रशालामें बैठकर चक्न वीके मंत्री व मित्रोंको बुलवाया। उनके आने पर कहने लगा कि मंत्री ! कहो, अब तो तुम्हारे स्वामीको जीत हुई या नहीं? तुम लोगोंका कार्य तो हुआ। मंत्रीने उत्तर दिया कि राजन् ! षट्खंडाधिपति सम्राटके आधीनस्थ राजाओंको अपने दरवाजेपर बुलवाया, फिर कहो कि जीत तुम्हारी है या हमारे स्वामीकी? उत्तरमें नमिराजने कहा कि कल विनामि आकर विवाहकार्यको सम्पन्न कर देगा । आप लोग आनंदसे जाएँ, इस प्रकार विनोद करनेके लिए, अपितु गम्भीपासका । यो सुकर दुझिको नया : हुआ। कहने लगा कि राजन् ! यह क्या कहते हो ? १६ दिनतक तुम्हारे कहनके अनुसार हम लोग यहां रह गये। अब तुम्हें छोड़कर हम कैसे जा सकते हैं ? तुम्हारे विना विवाहकी शोभा नहीं है । नमिराज कहने लगा कि मैं कैसे आ सकता हूँ ? तुम्हारे राजा मुझे "नमि आओ' इस प्रकार एकवचनसे संबोधन करेंगे। मुझे बुलाते समय "नमिराज आइये" इस प्रकार बहुमानात्मक शब्दका प्रयोग करना होगा। राजवंशमें जो उत्पन्न हैं, उनको राजा कहकर नहीं बुलाना यह राजाके लिए अपमान है। मैं षटखंडपतिको भेंट समर्पणकर एवं नमस्कार कर बैठ सकता है। परन्तु मेरे साथ बोलते समय 'आप' शब्दका प्रयोग कर ही बोलना चाहिए एवं मुझे राजा कहकर बुलाना होगा। ___ मंत्रीने उत्तरमें कहा कि राजन् ! आजपर्यंत किसीको भी हमारे स्वामीने राजा शब्दसे नहीं बुलाया । परन्तु तुम्हें बुलवायेंगे। आओ, तुम्हारे साथ सन्मानपूर्वक बोलनेके लिये कहेंगे। परंतु आप कहकर वे नहीं बुलायेंगे जैसे अन्य कन्या देनेवाले पिताओंको बुलायेंगे, उसी प्रकार बुलाकर "आइये, बैठिये" यह कहेंगे । परन्तु 'आप' शब्दका प्रयोग कैसे होगा? नमिराज कहने लगा कि आपलोग समझाकर इस आदत को छुड़ा नहीं सकते ? तब मंत्रीने कहा कि राजन् ! सम्राट्की गंभी. रताके संबंधमें आपको क्या कहें ? हमें बोलनेकी ही जरूरत नहीं है । उनकी वृत्तिको देखनेपर देवेद्रकी भी उसके सामने कोई कीमत नहीं है। "रहने दो एक नरपतिको सुरपतिसे भी ऊंचा दिखाकर आपलोग प्रशंसा कर रहे हो, यह केवल आप लोगोंकी चापलूसी है" नमिराजने कहा । उत्तर में मंत्री कहता है कि राजन् ! बोलो, क्या देवेंद्र तद्भवमो. क्षगामी हैं ? हमारे राजा तद्भवमोक्षगामी हैं। उनके गांभीर्यका क्या
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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