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मरतेश वैभम
३१९ ओरसे प्रेषित आभरणोंको कन्याको प्रदान करनेके लिए बुद्धिसागर मंत्रीने प्रार्थना की । स्वामिन् ! आपके यहाँ आभरणोंकी कमी नहीं है। तथापि सम्राट्के द्वारा प्रेषित इसे अवश्य ग्रहण करना चाहिये । लोकके सभी राजाओंसे जिसने भेंट ग्रहण किया उस सम्राट्ने तुम्हारी बहिनको भेंट भेजी है। तुम महान् भाग्यशाली हो, इस प्रकार सभी राजाओंने विनोदसे कहा । हर्षसे उस आभरणके तबकको उठाकर नमिराजने मधुवाणीको दिया । मधुवाणीने उसे परदेकी उस ओर ले जाकर सुभद्राकुमारीको उन आभरणोंको धारण कराया। उस समय सौभाग्यवती स्त्रियां अनेक मंगल गीतोंको गा रही थीं । मोतीके शिरोभूषणको उन लोगोंने जिस समय धारण कराया, उस समय उसका प्रकाश चारों ओर फैल गया। शायद वह चक्रवर्तीके पुण्यसामर्थ्यको ही लोकको सूचित कर रहा है । कठमें धारण किया हआ आभरण चक्रवर्ती भी कल इसी प्रकार अपने हाथसे कंठको आवृत करेगा, इस बातको सूचित कर रहा था 1 हाथमें जो भरतेश्वरके रूपसे युक्त रत्नमुद्रिकाको उसने धारण किया था वह इस बातको सूचित कर रही थी कि इसी प्रकार भरतेश्वर भी तुम्हारे वश होकर चिरकालतक राज्य करेंगे। चक्रवर्तीने कैसे अमूल्य व अनर्थ्य वस्त्राभरणोंको भेजे होंगे ! इसे वर्णन करना क्या शक्य है ? व सुभद्रा कुमारी स्वभावसे ही अलौकिकसुन्दरी है। उसमें भी चक्रवर्ती के द्वारा प्रेषित आभरणोंको धारण करने के बाद फिर कहना ही क्या ? उसमें एक नवीन कांति ही आ गई है। माताने मोतीके तिलकको लगाते हुए "श्रीसुभद्रादेवी भरतेश्वरके अंतःपुरमें प्रधान होकर सुखसे जीए" इस प्रकार आशीर्वाद दिया । इसी प्रकार नमिराज व विनमिराजकी रानियोंने भी तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया। नमिराजने सबको तांबूल, वस्त्र, आभूषणोंको प्रदान कर उनका सस्कार किया। मंत्रीने दरवाजेतक उनके साथ जाकर उनको भेजा । पुनः आकर चक्रवर्तीने जो वस्त्राभूषण नमिराजकी माता व स्त्रियोंके लिए भेजे थे, उन सबको प्रदान किया व महल ही उससे भर दिया। वह रात्रि बहुत हर्षके साथ व्यतीत हुई । प्रातःकाल होनेके बाद सबको महलमें बुलाकर नमिराजने बहुत आदरके साथ भोजन कराया और उन लोगोंसे कहने लगा कि आप लोग और एक बात सुनें। वह यह है कि चक्रवर्तक मंत्री बुद्धिसागरको आगे जाने दीजियेपा। आप हम मिलकर सब चकमके पास जावें, इसे आप लोग