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________________ भरतेश वैभव आ गये। उद्दंडराजा व वेतं लिए कोई बहाना नहीं था। इसलिए नमिराज योग्य मुहूर्त में इस मंगलकार्यको करनेके लिए उयुक्त हुआ । दिनमें जिनेन्द्रभगवंतकी पूजा, मुनिदान, ब्राह्मणभोजन आदि कराकर रात्रिके समय में सगाईके मंगलकार्यको संपन्न किया। नगरमें सर्वत्र श्रृंगार किया गया । रथ, विमान, हाथी, घोडा आदि सर्व राज्यांगकी शोभा की गई, मंगलमुखी नामक हथिनी जो कि सुभद्रादेवीके लिए अत्यन्त प्रिय थी, उसका शृंगार किया गया । उसके ऊपर कन्याके लिए अर्पण करने योग्य मंगलाभरण शोभित हो रहे थे । स्त्रियाँ हाथी पर चढ़ें तो विद्याधर लोग अपना अपमान समझते हैं। अतः स्त्रियोंके धारण करने योग्य आभरण भी हथिनीपर ही रखा है। क्योंकि वे क्षत्रिय क्षत्रियोंकी प्रतिष्ठाको अच्छी तरह जानते थे । पुरुष यदि हाथीपर चढ़ा हो तो उसके साथ स्त्रियां भी हाथीपर चढ़ सकती हैं । परन्तु केवल स्त्रियाँ हाथीपर चढ़ नहीं सकतीं । अतः मंगलमुखको ही अलंकृत किया था। इस प्रकार मंगलमुखी हथिनीपर अनेक आभरणविशेषोंको रखकर बहुत वैभव के साथ उस गगनवल्लभपुरके प्रत्येक राजमार्गोमं होते हुए राजालयमें प्रवेश किया । 1 ३१८ राजालय में प्रवेश करते ही सब लोगोंको होंपर वितमिराज व मंत्रीके साथ ठहराकर स्वतः नमिराज अंदर चले गये और वहाँपर अनेक अलंकारोंसे विभूषित अपनी बहिन का हजारों परिवार स्त्रियोंके साथ परदेकी आड़ में खड़ाकर, मंगळगृहमें स्थित अभ्यागतोंको बुलानेके लिए कहा 1 तदनुसार बहुत वैभवके साथ सब लोगोंने अंदर प्रवेश किया । जो आभरण कन्याको प्रदान करनेके लिये वे ले आये थे उनकी कांति सब दिशाओं में पसर रही थी । एक विशाल मंगलगृहमें पहुँचकर जहाँ नमिराजने इस उत्सव की सारी तैयारियाँ की थीं, उस आमरणकी थालीको एक रत्ननिर्मित आसनपर रख दिया। साथमें आए हुए राजागण बहुत विवेकी थे । उन्होंने उस अलंकारको अपने स्वामी की पट्टरानीका है, समझकर उसके प्रति अनेक भेंट समर्पण किया । कन्याकी माता उस समय आनंदसे फूली नहीं समाती थीं । सबको यथायोग्य आसन प्रदानकर नमिराज भी एक आसनपर बैठ गया । ब्राह्मण विद्वानोंने मंगलाष्टकका पठन किया। मंगलाष्टक के ये मंगलकौशिक आदि सुन्दर रागोंमें पठन कर रहे थे। मुहूर्तका समय आनेपर नमिराजने सबकी ओर देखा, उस समय भरतेश्वरकी
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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