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________________ भरतेश वैभन्न ३२१ वर्णन करें? समुद्रके समान गंभीरताको धारण करनेवाले हमारे सम्राट इंद्रकी वृत्तिको देखकर हँसने हैं ? जिनेन्द्रभगवन्तके सामने देवेन्द्र जिम समय आता जाता है उम समय नृत्य करने लगता है। परंतु सम्राट कहते हैं कि वह नाचता क्यों है। क्या भक्तिमे स्तुति करनेपर उत्कट भक्तिका फल नहीं मिल सकता है ! मागभ्रांतिकी भक्तिमें आवश्यकता नहीं है। देवेंद्र अपनी देवी के साथ समवसरणको हाथीपर चढ़कर जाता है, इस प्रकार खुले रूपमें अपनी स्त्रीको सबके सामने प्रदर्शन करते हुए यह भक्ति करनेके लिये जाता है, या अपनी स्त्रीकी लाजको बेचने के लिये जाता है। क्या अकेली ही स्त्रीको विमानमें लेकर वह दंबसभामें पहुँचकर दर्शन व भक्ति नहीं कर सकता है । लच्चे व लफंगे जैसे यूद्धमें जाते समय अपनी स्त्रियोंको माथमें ही ले जाते हैं, उस प्रकार यह बहिरंग पद्धति क्या है ! राजन् : उसकी गंभीरता यि योग कही उदाहरण है। दूसरे नहीं मिल सकते हैं । इसलिये वह तुम्हें राजा कहकर बोले तो भी तुम्हारा कम सन्मान नहीं हुआ। इसलिये व्यर्थ तुम आग्रह मत करो। तब नमिराजने बातको स्वीकार कर लिया। आप लोग आज आगे जावें। मैं कल आता हूँ, इस प्रकार कहकर उनको विदा किया। इसी प्रकार भंडारवती आदि स्त्रीजनोंका भी सत्कार करने के लिए माता यशोभद्रा देवीको कहलाकर भेजा। यशोभद्रा देवीने भी पुत्रोंकी इच्छानुसार उन स्त्रियोंका यथेष्ट बस्त्राभरणोंसे सन्मान किया । उन स्त्रियोंसे भी उनसे समयोचित विनोदालाप करती हुई अब भरतेश की ओर जानेके लिए आग्रह किया। तदनंतर सब लोग मिलकर बद्धिसागरके साथ रवाना हुए। इधर नमिराज अपनी माताकी महलमें चला गया। मातुश्रीको नमस्कार कर कहने लगा कि माताजी ! आप कहती थीं कि भरतेशको कन्या लेजाकर दो। परन्तु मैंने कहा था कि अपनी प्रतिष्ठाको खोकर कन्या देना यह उचित नहीं है । आखरको कौनसा मार्ग अच्छा हुआ? सभी राजाओंको अपनी महल में बुलाकर प्रतिष्ठाके साथ कन्या न देते हुये स्वयं लेजाकर देनेके लिये हम क्या डरपोक व्यापारी हैं ? अपनी कन्याके लिए जब बड़े-बड़े राजा सम्मानके साथ यहाँपर आनेके लिए तैयार हैं तो फिर वहाँपर लेजाकर देनेके लिए क्या बह लड्डू जलेबी है ? कन्या देनेके पूर्व लोभका परित्याग कर बारातमें आये हुओंको खुब सन्मान करना चाहिये । वह सम्राट स्वतः नहीं आया। यदि वह भी आता तो मैं उसकी सेना व उसका यथेष्ट सन्मान करता । उत्तरमें २१
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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