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________________ भरतेश वैभव ३११ धारण करती है वह क्या सामान्य रमणी है ? इस समय वह सुन्दरी भर यौवनको प्राप्त है। भरतेश्वरको मधुबाणीके वचनको सुनने में आनन्द तो आ रहा था, परन्तु उसे छिपाकर वे कहने लगे कि अच्छा ! जाने दो ! अब आप लोग किस कार्यसे आई हैं वह कहो । राजन् ! हमारा क्या कार्य है। आपकी मामीजीने हमें आपके पास इस सम्बन्धके समाचारको लेकर भेजी हैं। हम आ गई। परन्तु उसके चातुर्यको तो जरा सूनो राजन् ! विन मिराज, मन्त्री, विद्वान्, वगैरह सबने आपको ही देनेके लिए संमति दी है । परन्तु बड़े राजा नमिराज महान भाग्यशालीको हम कन्या कैसे देवें इस प्रकारके विचारमें पड़ा। वह कहते हैं कि संपत्तिमें हम भरतेश्वरकी बराबरी नहीं कर सकते हैं तो क्या कुलमें भी हम बराबरी नहीं कर सकते ? जब वह भरतेश हमें नीच दृष्टिसे देखता है तो हम उसे कन्या देकर सेवक क्यों कहलावें? हम उनसे कुलमें कम नहीं हैं। इत्यादि कहा । तब माताने पुत्रको बुलाकर अनेक प्रकारसे समझाया और भरतेशको ही कन्या देनेके लिये जोर दिया परन्तु नमिराजने फिर भी नहीं माना । उनका कहना था कि रीतसे भरतेश सगाई वगैरह करके बादमें आकर विवाह कर लें जायें तो कन्या देने में कोई हर्ज नहीं है । ऐसा न कर केवल लड़की दो, लड़की दो इतना कह से कौन कन्या देगा? यह मैं मानता हूँ कि हमें भरतेशसे अधिक कोई बन्धु नहीं है, तथापि हमें जब वह बराबरीकी दृष्टिसे नहीं देखता तो फिर माता ! तुम ही कहो कि उसे कन्या क्यों देनी चाहिए। तब नमिराजके वधनको सुनकर माताने यह कहा कि बेटा ! उसके मामा होते तो वह यहाँपर अवश्य आता, परन्तु तुम्हारे पास वह कैसे आयेगा ? क्या वह चक्रवर्ती नहीं है? मैं और एक उपाय कहती हैं, सुनो। सगाईकी रीतको तो वह यहाँपर करावें और बादमें अपनी कन्याको यहाँ लेजाकर विवाह वहाँपर करावें । यह बात नमिराजको भी पसन्द आई। तब हम इसे कहने के लिये आपके पास आई हैं । नमिराजकी राजनीति और मामीके गुणोंके प्रति भरतेश्वरके मनमें प्रसन्नता हई तथापि उसे बाहर न बताकर वे कहने लगे कि पहिले सबने जैसे कन्या दी है उसी प्रकार लाकर देनेको कहो । यह सब इस प्रकार नहीं हो सकता है । तब मधुवाणीने कहा कि राजन् ! यदि मामीजीने इस बातको सुन ली तो उन्हें बहुत दुःख होगा । सोचो। तब भरतेश्वरने कहा कि ठीक है ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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