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________________ ३१२ भरतेश वैभव मैं अपनी तरफसे प्रमुख राजाओंको भेजकर सगाईका कार्य कराऊँगा । तब उन दोनोंका मुख फिरसे खिल गया तदनन्तर उन दोनों को स्नानादि करानेके लिए हुकुम देकर स्वतः पण्डिता मन्त्रणाकर महलकी ओर गये । महलमें जाकर उदास चित्तसे खिन्नमुख होकर एक आसनपर चक्रवर्ती बैठे हैं। इतनेमें वहाँ सभी रानियों आकर एकत्रित हुईं। भरतेश्वरको देखकर सबको आश्चर्य हुआ। सुननेमें आया है कि आज हर्ष का समाचार आया है, परन्तु ये तो चिंतामें बैठे हैं। क्या कारण है ? सबको जाननेकी उत्कंठा हुई । सबने भरतेश्वरकी चिंताका कारण पंडितासे पूछा । पंडित ने कहा कि सन्तोषका वृत्तांत अवश्य आया है । परन्तु उसमें तीन बातें ऐसी हैं जिनके कारणसे सम्राट्के चित्तमें चिता उत्पन्न हो गई है। सम्राट् असमंजस में पड़ गये हैं । उनको ग्रहण भी नहीं कर सकते, छोड़ भी नहीं सकते । बड़ी दिक्कत हो गई है । जब वहाँ कन्या उत्पन्न हुई उस समय माता-पिताओंने संकल्प किया था कि इसका विवाह भरतेश्वरके साथ ही करेंगे उसी संकल्पसे सुभद्राकुमारीका पालन-पोषण हुआ। आज भी उसे भरतको ही देनेकी इच्छा है, परन्तु सगाई पहिले हो जानी चाहिए ऐसा उनका कहना है। एक शर्त और है। पट्टके मुकुटको धारण कर विवाह होना चाहिये, साथ ही पट्टरानी उसे बनानी चाहिए। ऐसा उनके कहनेपर चिता पैदा हुई । सम्राट्ने कहा कि उसे पट्टरानी क्यों बनावें ? मेरी सभी रानियाँ जैसे रहती हैं वैसी ही इसे भी मेरे अंतःपुर में सुखसे रहने दो। परन्तु उन लोगोंने इस बातको स्वीकार नहीं किया। क्योंकि सम्राट्के हृदयमें उनकी सभी रानियोंके प्रति कोई पक्षपात नहीं है । वे कभी भेदभाव से अपनी रानियोंको देख नहीं सकते। अतएव इतनी चिंता उत्पन्न हो गई है । रानियोंको भरतेश्वरके मनोवृत्तिको देखकर हर्ष हुआ । चुपचापके उस सुभद्रादेवीको सबकी इच्छानुसार महत्व देकर लाव तो हमलोग क्या कर सकती हैं ? तयापि सम्राट्के मनमें हम लोगोंके प्रति कितना प्रेम है ? इस प्रकार वे सब विचार करने लगीं। अपनी माताके भाईकी बह पुत्री है, उसमें भी सम्राट् के लिए ही उसका संकल्प हो चुका है । फिर इतनी चिन्ता क्यों ? वे जो कुछ मांगते हैं उन सबको देकर सुखसे विवाह कर लेना चाहिये । इसमें हम लोगोंकी सबकी सम्मति
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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