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________________ ३१० भरतेश वैभव आपकी जीभ से नहीं ! हृदये पूछियेगा आपके हृदय में यह होने भी मुझे फँसा रहे हो । सचमुच में तुम कपटियोंके राजा हो । बोलो राजन ! तुम्हारे हृदयमें वह है या नहीं । मधुवाणी ! जाने दो। मैंने पहिले से ही पूछा था कि महल में सब आनंद मंगल तो है ? उसीमें सब अंतर्भूत हुए या नहीं ? फिर अलग पूछनेकी क्या आवश्यकता है? भरतेइबरने कहा। लाल "हाँ! हमारे स्वामीने पहिले ही पूछा था कि क्या महलमें सब आनन्द हैं ? मधुवाणी ! व्यर्थ प्रकरणको मत बढ़ाओ" । कालिंदीने कहा | स्वामिन्! इस बातको जाने दीजिए। हमारी देवीने आपके सौंदर्यकी समानताको देखकर विनोदके लिए कुछ कहा क्षमा करें। एक रत्नका दो विभाग कर स्त्री और पुरुषरूपमें उसे बनाया । उन दोनों में आत्मा आकर आप दोनों बन गये ऐसा मालूम होता है । यहाँपर कोई नहीं है । एकांत है, सुनो। आपका सुंदर हृदय व हमारी देवीके पीनस्तन सचमुच में पोनपुण्यनिर्मित है। आप लोगोंके मिलने पर न मालूम किस प्रकार भाग्योदय होगा ? सुवर्णलताके समान सुंदर आप लोगोंकी बहुलताको मैंने देखी। वे लतायें जब रत्नबिम्बके समान सुन्दर शरीरपर वेष्टित होवें तो न मालूम कितना सुन्दर मालूम होगी ? सुन्दर दाँत, ओठ, हँसमुख व दीर्घनेत्रको देखो । कमलको कमल मिलनेपर दूसरोंकी चिन्ता क्यों हो सकती है ? पाद, जाँघ, कटि, उदर, छाती, बाहु, मुख, केशपाश, कण्ठ आदि सभी अवयवोंको देखनेपर दोनोंकी जोड़ी बहुत सुन्दर मालूम होती है। स्वामिन् आप तो अनेक पुजारियोंसे पूजित नवीन देव के समान मालूम होते हैं । परंतु वह देवी - देवताके समान मालूम होती है परंतु वह अभीतक किसीको पूजाके लिये मिली नहीं है । किसीकी पूजासे भी वह प्रसन्न नहीं होगी। तुम उसे अपने हृदयमें रखकर ध्यान करोगे तो वह अवश्य ही आये बिना नहीं रहेगी एवं तुम्हारे लिये महासुख देगी। तुम सचमुच में महाभाग्यशाली हो मधुवाणीने कहा, भरतेश्वर सुनकर मुस्कराये । तव मधुवाणीने फिर कहा कि आपको हँसी आना साहजिक है। क्योंकि देवांगनाको भी तिरस्कृत करनेवाली जब रानी मिल रही है तो क्यों नहीं आनंद होगा ? तुम्हारी. मामीने इस कन्या को अपने भानजेको देनेके लिये बहुत चिंतासे पालन किया था | अब वह सचमुच में तुम्हारे मनको अपहरण करनेवाले रूपको धारण कर रही है । करोड़ों मन्मयोंके बाणको केवल अपनी दृष्टिमें जो
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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