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भरतेश वैभव
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प्रकट करती हुई कहने लगी कि आप तो महान बुद्धिमान हैं । चिरकाल की बातोंको भी स्मरण रखते हैं । आपकी मामीजीने आपको भेंट भेजी हैं । उसे स्वीकार करें। इतनेमें एक-एक सुवर्णकमलको समर्पण करती हुई मधुवाणीने भी चक्रवर्तीको नमस्कार किया। कालिदीने उसका परिचय कराया । यह तुम्हारी मामीकी विलासिनी, श्रीकलानिवासिनी, मधुवाणी है । इसके वचन अत्यंत मृदु मधुर होते हैं।
सम्राट्ने दोनोंको बैठने के लिए इशारा करते हुए प्रश्न किया कि क्या मामीजी क्षेम हैं ? नमि, विनमि कुशल तो हैं महल में सब आनंद मंगल तो है ? कालिंदी ! जरा कहो तो सही।।
स्वामिन् ! आपकी मामी कुशल हैं। जबसे आपके इधर आनेका समाचार मालूम हुआ है, उनको बहुत आनंद है। इसी प्रकार नमि विनमिको भी बड़ा आनंद हो रहा है। वे भी आपके वैभवको सुनकर संतुष्ट हो रहे हैं। कालिंदीने कहा । ___ "मेरे आनेके समाचारसे मामाजीको संतोष हुआ है, यह तो सत्य है । परंतु शेष वार्ता सत्य नहीं है" भरतेश्वरने कहा 1 ___ "नहीं ! स्वामिन् ! सबको आनद है । सौभाग्यशाली आपके आनेपर गरीबोंको निधिप्राप्तिके समान, समुद्रको चंद्रदर्शनके समान हमारे स्वामियोंको भी परमानंद हो रहा है ।" मधुवाणीने कहा । मधुवाणीने पुनः समय जानकर कहा कि लोग कहते हैं यह सम्राट सभी राजाओंमें श्रेष्ठ है । परन्तु मुझे मालूम होता है कि यह महान् मायाचारी है। भरतेश्वरने हंसते हए पूछा कि मैंने क्या मायाचार किया? बोलो! तब मधुवाणीने कहा कि आप ही सोचो। कुशल समाचारको पूछनेका आपका जो तरीका है वही मायाचारको सूचित करता है। मामीके कुशल समाचारको पूछा। मामीके पुत्रोंके क्षेम-वृत्तांतका प्रश्न किया
और एक व्यक्तिका समाचार क्यों नहीं पूछा ? क्या यह आपकी चिंत्ताविशुद्धि है या मायाचार है ? आप ही कहियेगा।।
और कौन हैं ? चक्रवर्तीने अनजान होकर पूछा । 'कोई नहीं है ? मधुवाणीने फिर पूछा । सम्राट् बोले कि "नहीं"।
"अच्छा ! वृत्तभारोम्नतकुचको धारणकरनेवाली आपकी मामीकी बेटी है। आप नहीं जानते हैं ?" मधुवाणीने कहा । "क्या हमारी मामीको एक बेटी भी है ? मुझे मालूम ही नहीं भरतेश्वरने कहा।
"अच्छा ! आपको मालूम नहीं ! आप बड़े कुटिल मालूम होते हैं।