________________
१६
भरतेश वैभव
जाने किंवर उड़कर जायेगा ? इसी प्रकार हे राजन् ! आपने अपनी बुद्धिको सीधा मुक्तिमें लगाया है। आत्मा अपनी चंचल परिणतिसे इधर-उधर विचरण न करे, अतएव आपने उस डोरीको सम्हालकर मुक्तिमें लगाया है । घटिका यंत्रको देखनेके लिये जो व्यक्ति बैठा है, वह निद्रा आनेपर दूसरोंसे कथा कहनेके लिये प्रेरणा कर स्वयं हुंकार करते हुए भी उस घटिका यंत्रसे अपनी दृष्टिको जिस प्रकार नहीं हटाता है; उसी प्रकार आत्मविज्ञानी भी संसारकी अनेक विकलताओंके मध्य अपनी आत्माको नहीं भूलता है ।
भावार्थ- पूर्व में समय जाननेके लिये घोलू ऐसे यंत्र हुआ करते थे कि बिना पड़ोगे काम करता था । उन वर्षके समय ठीक मुहूर्तसे कार्य संपन्न करने के लिये एक प्रमाणविशेषसे निश्चित कटोरीके तलमें एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्रकर उसे पानी में डालते थे। उस छिद्रसे पानी अंदर जाकर जिस समय वह कटोरी डूबती श्री तब एक घटिका होती थी । फिर उसे खालीकर उस पानीमें छोड़ना पड़ता है। इसी प्रकार घटिकाकी निर्णय करते थे। आज कल भी कहीं कहीं इस प्रकारकी प्रथा है । परन्तु आजकलकी घडियालसे समय जाननेके लिए घडियालके पास किसी आदमी को बिठलाना नहीं पड़ता है। देशी साधन के पास किसी आदमीको बिठलाना पड़ता है। क्योंकि वहाँ कोई न बैठे तो कटोरी डूबकर कितना समय हुआ यह जाननेका कोई साधन नहीं। उसके पास जो आदमी बैठा रहता है उसे समय बितानेके लिये कोई कहानी कहने को कहता है । कहानी कहनेवाला भी सुननेवालेको नींद नहीं आवे इसलिए हुंकार देने को कहता है। वह आदमी हुंकार तो देता है, परंतु उसकी दृष्टि उस पानीकी कटोरीकी तरफ ही रहती है। नहीं तो वह उद्देश्य से च्युत हो जाता है। इसी प्रकार आत्मविज्ञानी व्याव हारिक सर्व कार्यों में रहते हुए भी अपने लक्ष्यसे च्युत नहीं होता है । अपनी आत्मामें स्थिर रहता है ।
लोकमें ऐसे बहुत होंगे' जो स्त्रियोंके सौंदर्यका वर्णन करनेपर बहुत आसक्तिपूर्वक उसे सुनते हैं । उस स्त्रीका मुख चंद्रमाके समान है, उसका कुछ अमृतके कुंभके समान है । वह मदोन्मत्त हथिनीके समान है, उसकी जंघा केलेके वृक्षके समान है, उसकी कटिं अत्यंत पतली है आदि श्रद्धापूर्ण वर्णनको लोग उत्साहसहित सुनते हैं। आत्महितकारी तत्व सुननेवाले, हे राजन् ! आप सरीखे भला कितने होंगे ?
इस राज्यासनपर आरूढ होकर कामकथा, चोरकथा, जारकथा,