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________________ भरतेश वैभव विष तो लोकमें सबको मारने में समर्थ है, किन्तु जिसे गारुडी मन्त्र सिद्ध है क्या उसका विष कुछ बिगाड़ सकता है ? नहीं। इसी प्रकार इंद्रियजनित सुस्त्र जगतमें सबको दुःख देता है, तो क्या वह आत्मविज्ञानीका कुछ बिगाड़ कर सकता है ? कभी नहीं। है राजन् ! आपकी यह वत्ति अन्य नरेशोंमें नहीं है । आपकी वृत्ति, आपकी बात, आपमें ही देखकर, हे षट्खंडके अखंडस्वामी, मैंने यह सब निवेदन किया है । लोकमें बहुधा ऐमी पद्धति देखी जाती है कि जो बात राजाको प्रिय हो, बही लोग कहते हैं। उसी प्रकार आपको प्रसन्न करनेकी दष्टिसे मैंने यह नहीं कहा है। हे भरतेग ! जापका यह तत्व निश्चयसे मोक्षका मार्ग है। राजन् ! लोकमें ऐसे बहुतसे योमी होंगे, जो बाह्य सम्पूर्ण परिग्रहका परित्याग कर अंतरंग निमल आत्माका दर्शन करते हैं; परन्तु बाह्य अतुल ऐश्वर्य रखते हुए भी अन्तरंग में अकिंचनतुल्य निर्मोही होकर आत्मानुभव करनेवाले आप सरीखे कितने हैं ? लोकमें संपत्ति, शरीर सौंदर्य, यौवन, अधिकार ये सब प्रायः मनुष्यको अभिमानके पर्वत पर चढाकर अवनतिके गड्ढे में गिराने में सार्थक हैं, परन्तु हे भरलेश ! इनमेंसे आपमें किस बातकी कमी है ? फिर भी आप अविवेकी नहीं हैं । इन सब बातोंमें पूर्णता होते हुए भी आपकी दृष्टि सिद्धालयकी ओर लगी हुई है। आप सदृश तत्वविलासी लोकमें अन्य कौन हैं ? अमुक मेरे शन हैं । उसको मैं कैसे जीतूं ? अमुक शत्रु को जीतनेका क्या उपाय है ? ऐमा विचार करनेवाले लोकमें अगणित हैं परन्तु यमको जीतने का क्या उपाय है. ऐसा विचार करनेवाले आप सदृश कितने हैं? जिस प्रकार एक नतंकी अपने मस्तकपर एक घड़ेको धारण कर नर्तन कर रही है। नृत्य करते समय वह गायन, ताल, लय आदिको भंग नहीं होने देती है। इतना सब होते हुए भी उसकी मुख्य दृष्टि यह रहती है कि मस्तकका घड़ा नीचे नहीं गिर पड़े । इसी प्रकार राजन् ! समस्त राज्यवैभवको सँभालते हुए भी आपकी मुख्यदष्टि मुक्ति में है। जिस समय बालक आकाशमें पतंग उड़ाते हैं उस समय पतंगके डोरेको अपने हाथमें रखते हैं। यदि उस डोरेको हाथमें न रखें तो पतंग न
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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