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भरतेश वैभव
२९३ हम कल ही वहाँपर आयेंगे | आपके यहाँ जो जिनेन्द्र बिम्ब हैं उसके दर्शन करनेकी हमें अभिलाषा है । भरतेश्वरकी आज्ञा पाकर दोनों देव यहाँसे सन्तोषके साथ अपने स्थानपर चल गये।
दुसरे ही दिन भरतेश्वरने वहाँसे प्रस्थान किया। कई मुक्कामोंको तय करते हुये सिन्धु नदीके तटपर पहुंचे । सिन्धुदेवने वहांपर भरतेश्वर का अपूर्व स्वागत किया । उत्तमोत्तम रत्न, वस्त्र आदिको समर्पण करते हुए भरतेश्वरका सन्मान किया । भरतेश्वरने विचार किया कि आजका दिन इसके उपचारमें बिताकर कल यहाँपर सिंधु नदीके तीर्थ में स्नान कर फिर आगे प्रस्थान करेंगे । सो सम्राट्ने आकाशको स्पर्श करनेवाले हिमवान् पर्वतमें उत्पन्न होकर दक्षिणाभिमुख होकर जमीनमें गिरनेवाली मिधुनदीको देखा। जमीनपर एक वनमय छोटा पर्वत मौजूद है, जिसके ऊपर स्फटिकमणिसे निर्मित एक जिनबिंब है । उसके मस्तक पर यह नदी पड़ रही है। वह बिंब सिद्धासनमें विराजमान है । उस. पर वह पानी पड़नेसे लोक भक्तगण ईश्वर अपने प्रस्तकपर भंगाको धारण करता है, इस प्रकार कहते हैं। द्विजोंके साथ युक्त होकर भरतेश्वरके मंत्री बुद्धिसागरने उस तीर्थ में स्नान किया एवं जिनेंद्रबिबकास्तोत्र करने लगा। इसी प्रकार वे सर्व भूसुर (ब्राह्मण) पुग्यतीर्थमें स्नान कर सहस्रनाममंत्रके पाठको करते हुए श्री सर्वश प्रतिमाका जप कर रहे थे । इस पूण्यशोभाको सम्राट बहत आनंदके साथ देख रहे हैं। अपनी नाकको हायसे दबाकर कोई प्राणायाम कर रहे हैं । कोई आचमन कर रहे हैं और कोई सुन्दर मंत्रोको उच्चारण करते हुए अहंन्नामकी स्तुति कर रहे हैं। इन सबकी भक्ति को देखकर सम्राट मन-मनमें ही प्रसन्न हो रहे हैं। मनमें विचार करते हैं कि ये पुरुनाथ {आदिप्रभु) की आदिसृष्टिके हैं, अतएव शिष्ट हैं। इस प्रकारकी परिणामशुद्धि सबमें कहाँसे आ सकती है। ___ इतने में वहाँ स्नान करनेवाले द्विज अब चक्रवर्ती तीर्थस्नान के लिए आयेंगे इस विचारसे जल्दी वहाँसे निकल गये । सम्राट अपनी रानियोंके साथ उस तीर्थ में प्रविष्ट हुए। अपनी रानियोंको तीर्थकी शोभा दिखलाकर बहुत भक्तिमे जिनेंद्रबिंबकी स्तुति भरतेश्वरने की । स्नान करनेके बाद मभी द्विजोंको दान दिया। तदनंदर मंत्रीको आज्ञा दी कि इनको अच्छी तरह भोजन कराओ । विप्रोने सम्राट्को "पुत्र पौत्रादिके साथ सुखजीवी बनो' इस प्रकार आशीर्वाद दिया। __ इतनेमें सिंधुदेवने आकर सम्राटके कानमें कहा कि स्वामिन् !