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________________ २९२ भरतेश वैभव चरणोंमें रखकर बड़े-खड़े ही नमस्कार करेंगे। इसके लिये अनुमति मिलनी चाहिये। भरतेश्वर हँसते हुए कहने लगे कि मागध ! इतनी ही बात है ! आप लोग इस मामूली बातके लिये इतने चितित क्यों होते हैं ? तथास्त । तुम्हारी बातकी मैं कभी उपेक्षा कर सकता हैं ? उनको आनेके लिए कहो। इतने में गंगादेव व सिन्धदेव आये, चक्रवर्ती के सामने भेंट रखकर अपने लिये योग्य आसनपर बैठ गये । समय जानकर सम्राट्ने कहा कि मंगादेव ! हमारे प्रति हित करनेवालोंको क्या मैं पहचानता नहीं ? क्या आप लोगोंको मैं उपेक्षित दृष्टिसे देख सकता हूँ ? इतने संकोचसे आनेकी क्या जरूरत थी? मंगादेव व सिन्धुदेवने कहा कि स्वामिन् हमने आपका क्या हित किया है। तीन लोकमें आपका सामना क्रोन कर सकते हैं ? हमें कोई संकोच नहीं था। परन्तु आपके सेवक व्यंतरोंके हृदयमें जो पूज्यभाव हमारे प्रति है उसीने थोड़ा संकोच उत्पन्न किया । आप कोई सामान्य राजा नहीं हैं । षट्खंड भुमि को एक छत्राधिपत्यसे संरक्षण करनेवाले महापुरुषके दर्शनको एकदम लेने में हमें भी मनमें संकोच होने लगा था । अपरिचितावस्थामें यह साहजिक ही है । स्वामिन् ! जो आपका विरोधी है वह स्वतःका विरोधी है 1 जो आपका हितैषी है वह स्वतःका भी हितैषी है | उद्दण्डोंके गर्वको तोड़नेकी, शरणागतोंको संरक्षण करने की सामर्थ्य जिसमें है, आप ऐसे भाग्यशाली का दर्शन बहुत पुण्यसे ही प्राप्त होता है । इस प्रकारके उनके विनयको देखकर व्यन्तरोंने कहा कि सचमुच में आप लोगोंने सम्राट्के सहज गुणोंका ही वर्णन किया है। सचमुचमें ये अलौकिक महापुरुष हैं। भरतेश्वरने समय जानकर कहा कि विशेष वर्णन करने की क्या आवश्यकता है ? आप लोमोंके विनयको मैं अच्छी तरह जानता हूँ । अधिक क्या कहें। आजसे आप लोग हमारे कूटम्बवर्ग में गिने जायेंगे । आपलोगोंके साथ हमारे रोटी-बेटी व्यवहार तो नहीं हो सकेगा। परन्तु वचनसे ही बन्धुत्वका व्यवहार कायम हो सकेगा। आजसे आप लोग हमारी रानियों को आपकी बहिन समझे और आपकी देवियोंको हम अपनी बहिन समझेंगे। भरतेश्वरकी इस विशिष्ट उदारताको देखकर पासके व्यन्तरगण कहने लगे कि गंगादेव और सिन्धुदेव महान् पुण्यशाली हैं जिन्होंने कि आज चक्रवर्ती के साथ बन्धुत्वका भाग्य पाया है। तदनंतर गंगादेव और सिंधुदेवको अनेक उपहारोंको देते हुए सम्राट्ने कहा कि आप लोग आज अपने स्थानमें जाएँ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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