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पराभव
पधारेंगे उस समय वे अवश्य ही विनयके साथ आपसे आकर मिलेंगे। स्वामिन् ! आप व्यवहार-विनयके लिए हमारे राजाको मिलनेके लिए कहते हैं। आपको किस पदार्थकी इच्छा है ? उसकी कौनसी बड़ी बात है, उसे मैं ही आगे लाकर आपको समर्पण कराऊंगा।
बिनमि भी सम्राट्से कहने लगा कि आपके चित्तको दुखाना यह हमारी बुद्धिमत्ता नहीं है। आपके लिए जिससे सन्तोष होगा वैसा हम अवश्य करेंगे। ___ मरतेश--विनमि ! उसकी कोई बात नहीं, परन्तु तुम्हारा भाई जो मेरे साथ अभिमान बतला रहा है क्या यह उचित है ? केवल तुम्हारे लिये सहन किया और कोई बात नहीं। इतना ही नहीं इसमें एक गूढ़ रहस्य है । सुनो, तुम्हारी माता मेरी बाल्यावस्थामें मुझसे बहुत प्यार करती थी, मुझे खिलाती थी, उसके तरफ देखकर शांत रहा। अगर मैं इस समय कुछ करता तो मेरी मामीजी तो यही कहती कि मेरे पुत्रोंने अविवेकसे कुछ किया तो भी भरतेशने उनको परकीय दृष्टिसे देखा । आपलोगोंमें कौनसा गुण है । मामा-मामीके तरफ देखना चाहिये, उनके हृदयमें कोई भेद नहीं है। आप लोग मायाचार करते हैं। पासके मित्रगण विनमिराजासे कहने लगे कि विनमि ! तुम्हारा भाग्य बहुत बड़ा है। तुम्हारे माता-पिताओंको जब सम्राट्ने मामी व मामाके नामसे संबोधित किया, इससे अधिक और सम्मान क्या हो सकता है ? उत्तमोत्तम कन्यारत्नोंको समर्पण करनेवाले हजारों राजा हैं, परंतु सम्राट्ने आजतक किसीको मामी मामाके नामसे सम्बोधन नहीं किया है। यह भाग्य तो आप लोगोंने पाया है। फिर भी सम्राट के साथ भेदभाव रखते हो यह आश्चर्यकी बात है। बुद्धिसागर मंत्रीने भी विनमिसे कहा कि विननि ! नमिराजसे जाकर मेरी ओरसे भी विनती करना कि शीघ्न ही वह सम्राटसे आकर मिले । उस समय अन्य मित्रोंने कहा कि बिनमि ! अब तो हद्द हो गई। सम्राट्का मंत्री बुद्धिसागर अपने स्वामीके सिवाय और किसीको विनती शब्दसे विनय नहीं कर सकता है। फिर भी नमिराजके लिये विनती शब्द का प्रयोग कर रहा है। इससे अधिक और कौनसे सन्मानकी आबश्यकता है ? आज सम्राट्के पास बुद्धिसागरके सिवाय और किसका महत्व अधिक है, वह सम्राट्का प्रतिनिधि है। वह दूसरे बड़ेसे बड़े राजाओंके साप भी इस प्रकार बोल नहीं सकता है। ऐसी अवस्थामें