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________________ भरतेश वैभव २७७ भरतेश नाम रखा है, में भरतभूमिका ईश अवश्य बनूँगा । परंतु मुझे खेद है कि आप लोग अपने पिताकी इच्छाकी पूर्ति नहीं कर सके । कच्छ महाकच्छ मामाके स्वच्छ गर्भमें उत्पन्न होकर तुम लोग स्वेच्छाचारी हो गये यह आश्चर्यकी बात है । इस प्रकार भरतेश्वरने कुछ तिरस्कारयुक्त बाणी से कहा । कोरी बातोंसे विनय दिखाकर अपने मनकी बात छिपाकर मुझे फंसानेके लिये चलें, क्या इस चालको मैं नहीं जानता ? विनमि ! क्या बुद्धिमानोंके साथ ऐसा करनेसे चल मकता है ? वितमि - भावजी ! आप ऐसा क्यों कहते हैं यह समझ में नहीं आया । हमने कौनसी बात आपसे छिपाई, हमारे हृदयमें जरा भी कपट नहीं है। जब आप इस प्रकार बोल रहे हैं। हम तो परकीय हैं. ऐसा अर्थ निकलता है भरतेश विनमि ! तुम परकीय नहीं हो। तुम आत्मीय हो, परन्तु तुम्हारे भाई नमि परकीय है। उसके हृदयको मैं अच्छी तरह जानता हूँ । उसे कहने की जरूरत नहीं। अपने मनमें ही रखो। मौकेपर सर्व विदित हो जायगा । उसके अभिमानको छुड़ाना व उसके गूढ़की रूढ़ करना कोई मेरे लिये अवगाड़ ( कठिन ) नहीं है । परन्तु अभी नहीं, आगे देखा जायेगा। इस प्रकार भरतेश्वरने रहस्ययुक्त वचनको कहा । भरतेश्वरने नागर, दक्षिण, विट, विदूषकादि अपने मित्रोंसे पूछा कि आप लोग भी कहें कि मैं जो कुछ भी बोल रहा हूँ वह ठीक है या नहीं, आप लोगोंको पसंद है या नहीं । नागर -- स्वामिन् | आपका वचन किसे अच्छा नहीं लगेगा ? लोकमें सबको आपका वचन वशकर लेता है। यहाँ नहीं आया हुआ नमिराज भी अवश्य कल आ जायगा । यह आपके वचन में सामर्थ्य है । अनुकूल नायक-- स्वामिन् ! जब आपने विनमिराजको नमिराजके संबंध में जो अपना विचार था कह ही दिया है. तब बुद्धिमान् विनमिराज जाकर इस मामलेको सुलझाये बिना नहीं रह सकता है । विनायक - उस नमिराजने सम्राट्के लिये भेंट क्या भेजी है ? वस्त्राभूषणसम्राट्के पास नहीं हैं ? विशिष्ट व्यक्तियोंको किस चीज की आवश्यकता या इच्छा रहती हैं, यह समझकर भेंट भेजना यह बुद्धिमानों का कर्तव्य है । जीवरत्नोंमें उत्कृष्ट पदार्थोंको न भेजकर अजीव रत्नोंको भेजनेसे क्या मतलब ? ( विनमि मनमें सोचने लगा | )
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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