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________________ २७६ भरतेश वैभव भरतेश-विनमि रहने दो। यह ढोंग क्यों रचते हो ? यह सब कुछ झूठ है, वह मेरे पास क्यों नहीं आया ? उसकी इस बक्रताको क्या मैं नहीं जानता? __विनमि-स्वामिन् ! मेरे इधर आने के ३ दिन पहिलेसे वह एक विद्याको सिद्ध कर रहा था, उस कारणसे वह नहीं आ सका, नहीं तो जरूर आता । भरतेश-क्या मैं इस तंत्रको नहीं जान सकता ? विनमि ! अपने भाईको बोलो कि मेरे साथ यह चाल चलना उचित नहीं है । मेरे साथ यह अभिमान नहीं चल सकता है। जाने दो जी । मैं विनोदके लिये बोल रहा हूँ। मैं भूल गया, वह मेरे मामाका पुत्र है। इसलिये वह अपने अभिमानको व्यक्त कर रहा होगा। आप लोगोंको ध्यान रहे । मैं आगे जाकर उसके साथ लीला विनोद करूंगा,आप लोग भी देखेंगे। आगे क्यों ? आज ही व्यतरोंको भेजकर वह जिस विद्याको सिद्ध कर रहा है उसकी अधिदेवताओंको वापिस कराऊँ ? व्यंतरोंको भी क्यों भेज ? मैं ही अपने आत्मध्यानके बलसे उसकी विद्याका उच्चाटन कर डालं? उच्चाटन भी क्यों करूं? उन विद्याओंको आकर्षण कर अपनी विद्याके बलसे उनको दबा डालू ? परंतु यह सब करना उचित नहीं है, नहीं तो यदि मंत्रबलको देखना ही हो तो मैं अभी उस भ्रामरी विद्याको सिद्ध करनेवाले विनमिको भ्रम उत्पन्न कर सकता है। विधाके मायने भूत है, उसे सामान्य लोग मुझे सिद्धि है फिर किस बातकी कमी है। लोग विवेकरहित हैं, उस परमात्माकी शक्तिको नहीं जानते हैं। वह परममोक्षस्थानको प्राप्त करानेवाला है। फिर उसके ध्यान करनेवाले भव्योंके लिये क्या-क्या सिद्धि नहीं हो सकती है ? मेरे लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है, फिर भी मैं उसको विघ्न नहीं करूँगा । तुम्हारे लिये केवल सूचना दी है। समझ लेना। विनमि---आपकी सामर्थ्य बहुत बड़ी है, यह हम जानते हैं । उसे सामर्थ्य के प्रदर्शनको अपने मामाके पुत्रोंपर दिखाना उचित नहीं । उनके साथ तो हंसी खुशी मनानी चाहिये । भरतेश-रहने दो, बातें बनाकर मुझे ठगनेके लिये आये हो, आप लोग मेरे मामाके पुत्र हैं। परंतु आप लोगोंका व्यवहार बहुत ही विचित्र दिखता है। आप लोगोंका नाम मामाजीने नमि व विनमि रखा है, फिर आप लोग मुझे नमन क्यों नहीं करते हैं ? मुझे पिताजीने
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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