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भरतेश वैभव धर मंत्री मौजूद हैं। उनको भी भेजनेके लिए भरतेश्वर विचार कर रहे हैं । आजकलमें भेजनेवाले हैं । __ इस प्रकार भरतेश्वरके दिन अत्यन्त आनन्दोत्सवमें ही व्यतीत हो रहे हैं। नित्य नये उत्मव, नित्य नया मंगल, जहाँ देखो वहाँ आनंद के तरंग उमड़ रहे हैं। इसका कारण भी क्या है? इसका एकमात्र कारण यह है कि भरतेश्वरक हृदयमें रहनेवाला धैर्य, स्थर्य व विवेक । संपत्ति मिलनेपर अविवेकी न होना, अत्यधिक सुखकी प्राप्ति होनेपर भी अपने
आत्माको न भूलना यही महापुरुषोंकी विशेषता है। भरतेश्वर परमास्माकी भावना इस हृदयसे करते हैं कि___ "हे परमात्मन् ! आप प्रौढोंके परमाराध्य देव हैं। पराक्रमियोंके परम आराधनीय हृदय हैं। अध्यात्मगाढ़ोंके अतिहृद्य हृदय हैं। गूढ़स्थानमें वास करनेवाले हैं एवं लोकरूढ़ हैं, मेरे हृदयमें बने रहें । हे सिद्धात्मन् ! आप परमगुरु, परमाराध्य परात्पर तम्त हैं। इसलिये आपको नमोस्तु, आप सौख्यतत्पर हैं, अतएव हमें भी सुबुद्धि दीजियंगा। ___ इसी सद्भावनासे उनको उत्तरोत्तर आनंदराशिकी प्राप्ति हो रही है।
इति भूवरीविवाह संधि
विनमिवार्तालाप संधि एक दिनकी बात है, भरतेश्वर अपने मित्र व मंत्रीके साथ दरबारमें विराजमान हैं 1 विनमि भी अब अपने राज्यको जाना चाहता है। उसे सम्राट्के पास बहुत दिन हो चुके हैं । भरतेश्वरने भी अब जानेकी सम्मति देनेका विचार किया था। मौका पाकर भरतेश्वरने विनमिसे कहा विनमि ! देखो नमिने अपनी बड़प्पन दिखला ही दिया । न मालूम उसने मुझे क्या समझ लिया हो । भगवन् ! शायद उसे इस बातका अभिमान होगा कि मैं चांदी के पर्वतपर ( विजयाध ) हूँ। रहने दो ! देखा जायगा।
विनमि विनयके साथ बोला कि स्वामिन् ! नमिराजने ऐसा कौनसा अभिमान बतलाया? आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? यह हमारे पूर्वजन्म के कर्मका फल है।