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भरतेश वैभव वहांपर जो राजा थे उनमेंसे जिन्होंने कन्याओंको समर्पण किया था उनको अपनी-अपनी पत्रियोंसे मिलकर आने के लिए महलमें भेज दिया एवं बाकी बचे हुए राजाओंका यथेष्ट सत्कार किया । विद्याधरलोकके एवं म्लेच्छ रखंडके राजाओंको बुलाकर सम्राट्ने वाहा कि आप लोगोंका ही मैं पहिले सत्कार करता हूँ, नहीं तो आप लोग कहेंगे लड़की देनेवालोंका सत्कार पहिले किया। इसलिए आप लोगोंका सत्कार पहिले कर बादमें उनका किया जायगा। सबका यथोचित सत्कार करने के बाद जयकुमारने समय जानकर कहा कि आप लोगोंमें कुछ लोग अपने-अपने राज्यमें जा सकते हैं । मुछ लोग यहाँप रामादकी संकामें रह सकते हैं। जयकुमारकी बात सुनकर उन सबने उत्तर दिया कि सेनानायक ! हम लोगोंमें कुछ लोग राज्यमें जाकर क्या करें ? हम लोगोंकी यही इच्छा है कि हमें सतत सम्राट्की चरणसेवा मिले । इसलिये हम यहींपर रहकर अपने समयको व्यतीत करना चाहते हैं। सम्राट् व जयकुमारने उसके लिए अनुमति दी । उनको परमहर्ष हुआ। उन सबने सम्राट्के चरणों में भक्तिके साथ नमस्कार किया। ___अपनी पुत्रियोंके महलमें गये हुए सभी राजागण लौटे । उद्दण्डराज वेतण्डराज आदि लेकर सर्व राजाओंको भरतेश्वरने यथेष्ट सन्मान किया व मित्रों की ओर देखते हए कहा कि अब आपलोग अपने-अपने राज्यमें जा सकते हैं ? वहाँपर सुखसे राज्यपालन करें। जब आप लोगोंको हमें देखनेकी इच्छा होगी उस समय हमारे पास आ सकते हैं।
मित्रोंने भी समय जानकर बहुत संतोषके साथ कहा कि स्वामिन् ! इनका भाग्य बहुत बड़ा है । आपके राजमहलको बेरोकटोक प्रवेश कर सुखसे रहने के बहुभाग्यको उन्होंने प्राप्त किया है ।
बादमें सब राजाओंने भरतेश्वरको नमस्कार किया एवं भरतेश्वरने भी उनकी सन्तोषके साथ विदाई की। उनके साथ सासूओंको भी अनेक उपहारकी पेटियोंको भेजे । बड़े-बड़े राजाओंको भी अरे, तुरे शब्दसे संबोधन करनेवाले मम्राट् अपनी स्त्रियोंको सासु शब्दसे उच्चारण किया, यह जानकर इन राजाओंको षखंड ही हाथमें आनेके समान संतोष हुआ। हर्षके साथ प्रयाण करते समय उद्दण्डराज व वेतण्डराज अपने सेनानायक व सेनाको भरतेश्वर की सेवामें नियुक्त कर चले गये। __ इस प्रकार आये हुए सभी राजा महाराजाओंको सम्राट्ने उनका यथोचित आदर सत्कार कर भेजा। अब केवल वितमिराज व विद्या