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________________ भरतेश वंभव २५९ उपर्युक्त पत्रको अर्ककी तिके पास भेजकर आदिराज अश्वारोही होकर चला गया । अर्ककीर्तिसे भी पत्र बाँचकर वहाँ रहा नहीं गया । चह भी उसी समय अश्वारोही होकर वहाँसे चला गया। इधर दक्षिण व नागरने आकर सर्व समाचार सम्राट्से कहा । तब सम्राट्नेभी पुत्रकी रक्षा के लिये अनेक सेना व विश्वस्त राजाओंको भेज दिया। वृषभराज बहुत उत्साह के साथ सेनास्थानको छोड़कर आगे बढ़ा । वहाँ जाकर एक विस्तृत प्रदेशमें अश्वारोहणकलाके अनुभव करनेके लिए प्रारंभ करने ही वाला था, इतनेमें आदिराजको आते हुए देखा । आदिराजको देखकर वृषभराज घोड़ेसे नीचे उतरकर भाईके पास आया और हाथ जोड़कर कहने लगा कि स्वामिन्! आपका यहाँपर आगमन क्यों हुआ ? मुझे तो घोड़े पर सवारी करनेकी इच्छा हुई, इसलिये में आया। इतनेमें अर्ककीर्तिकुमार भी आया । अर्ककीतिको देखकर दोनोंने नमस्कार किया । अर्ककीर्तिने दोनों भाइयोंको घोड़ पर चढ़नेके लिये आदेश दिया, साथमें अश्वारोहण. कलाको देखनेकी इच्छा प्रकट की। इतनेमें सम्राट् के द्वारा प्रेषित सेना, राजा वगैरह आ उपस्थित हुए, देखते देखते वहाँपर हजारों लोग इकट्ठे हुए । अर्ककीर्तिने भाई वृषभराजसे कहा कि भाई ! आज हम लोग अश्वारोहणकलाको देखना चाहते हैं । कुछ कमाल कर बताओ | तब वृषभराजने अपनी लघुताको व्यक्त करते हुए कहा कि स्वामिन्! मैं आपके सामने क्या कलाप्रदर्शन कर सकता हूँ। मैं डरता हूँ । अर्क कीर्तिने "डरने की कोई जरूरत नहीं है, हमें देखनेकी इच्छा हुई है ।" इत्यादि शब्दोंसे उसके संकोचको हटाया। बाद में वृषभराजने घोड़े पर सवार होकर उस कलामें उसने जो नैपुण्य प्राप्त किया था उसका प्रदर्शन किया। उस समय उसका घोड़ा प्रतिदिशा में वायुवेंगसे जाने लगा था। घोड़ े की अनेक प्रकारकी चाल, लगामका परिवर्तन, अनेक प्रकारका गमन इत्यादि बहुत प्रकारले अपनी विद्याका दिग्दर्शन कराया । आकाशमें नींबूको रखकर तीव्रगति से जाते हुए अश्वसे ही उस नींबूपर ठीक बाण चलाना आदि अनेक प्रकारसे दुसरोको आश्चर्यान्वित किया । आदिराज व अर्ककीर्तिको भी महान संतोष हुआ । अर्कोतिने लीला बंद करने के लिए इशारा किया । इतने में वृषभराज घोडेसे उतर कर भाईके पास आया और हाथ जोड़कर खड़ा रहा । अर्केकी तिने प्रसन्न होकर कहा कि वृषभराज ! तुम्हारी विद्याको देखकर मैं प्रसन्न हुआ हूँ मुझे आज मालूम हुआ कि तुम अश्वा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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