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भरतेश वैभव
रोहणकलामें इतना प्रवीण हुए हो। इतना कहकर दोनों भाइयोंने अपने कंठके दोनों हारोको निकालकर वृषभराजको पहना दिया | वृषभराजन भी दोनों को बहुत भक्तिपूर्वक नमस्कार किया । अर्ककीर्तिने आशीर्वाद देते हुए कहा कि अब खेल बंद करो, अब महलकी तरफ चलो। तीनों भाई अश्वारोही होकर परिवार सहित महलकी और चले। इधर महलमें भरतेश्वर भोजनका समय होनेपर भी भोजन न करके पुत्रोंकी प्रतीक्षा में बैठे रहे । उधरर्स तीनों कुमार अनेक वायके साथ सेनाकी तरफ आ रहे हैं । भरतेश्वर की आज्ञासे उनके स्वागतके लिये इधर भी बहुतसे राजा-महाराजा गये हैं । अनेक स्त्रियां आरती आदि मंगलद्रव्य लेकर स्वागतके लिये गईं। कितनी ही वेश्यायें कुमारोको दरबारके समान ही नमस्कार करने लगीं। तीनों कुमारोंने उनके तरफ उपेक्षितदृष्टिसे दृष्टिपात किया। क्योंकि उनको बाल्यकलामें ही परदारसहोदर, गणिकापगतचेति, विरत इत्यादि नामोंसे लोग उल्लेख करते थे । भरतेश्व॒को मालूम हुआ कि तीनों पुत्र क्रमशः अर्थात् सबसे आगे अर्ककीर्ति उसके पीछे आदिराज व बादमें वृषभराज इस प्रकार आ रहे हैं। उन्होंने उसी समय एक सेवकको बुलाकर उसके कानमें कुछ कहा । वह उसी समय उस जुलूसमें गया व भरतेश्वरको इच्छाको वहाँ प्रकट न करके स्वतः ही वृषभराज व आदिराज के घोड़ेको दाहिने ओर बाँयें तरफ करके और अर्ककीतिक घोड़े को बीचमें किया। अनेक स्थानोंमें उनपर लोग चामर डोल रहे हैं । कितने ही स्थानोंमें आरती उतार रहे हैं । इस प्रकार बहुत ही आदरको प्राप्त करते हुए वे तीनों कुमार बहुत समारंभके साथ राजभवन की ओर आ रहे है । सेनाके हर्षमय शब्दोंको सुनकर महलको माड़ियोंपर चढ़कर रानियाँ अपने पुत्रोंके आगमनको देखने लगीं व मन-मनमें बहुत ही हर्षित होने लगीं 1
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इस प्रकार अतुलसंभ्रमके साथ आकर तीनों पुत्र महलके सामने घोड़ेसे उतरे और अंदर जाकर पिताजीके चरणों में मस्तक रखा । भरतेश्वरने भी तीनों कुमारोंको आलिंगन देकर आशीर्वाद दिया । अर्ककीर्ति से कहा कि बेटा ! क्या तुम भी इनके साथ लीलाविनोदके लिये गये थे ? अर्ककीर्तिने बहुत विनयके साथ कहा कि स्वामिन् ! मैं आपसे या कहूँ ? वृषभराजने अश्वारोहणकलामें कमाल हो किया है। उसने उस कलाके अनेक प्रकारको जो दिखाया उसे देखकर हम सब आश्चर्यचकित हुए। स्वामिन्! उसकी लीलाको देखनेके लिये श्रीचरण ही
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