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भरतेश वैभव
विचार करेंगे, इत्यादि प्रकार से समझाकर मंत्री व निमिको नमिराजने भेज दिया ।
इधर चक्रवर्तीकी सेनामें एक विनोदपूर्ण घटना हुई 1 चक्रवर्ती कुमार वृषभराज अपने कुछ साथियोंको लेकर अश्वारोही होकर बाहर निकला । जाते समय उसने किसीको भी समाचार नहीं दिया । उसे न मालूम क्यों आज घोड़ेपर सवार होकर कुछ विनोद करनेका विचार उत्पन्न हुआ । जाते समय मार्ग में अनेक राजा-महाराजा उसे मिले । सम्राट्को देखकर उन लोगोंने बहुत विनयके साथ वृषभराजको नमस्कार किया और साथमें आने लगे । वृषभराजने उनको नगरमें जानेके लिये इशारा किया। आगे बढ़ने पर दक्षिण व नागर मिले । उन लोगोंने नमस्कार कर प्रार्थना की कि अपने ! आज तुम कुमार अपने भाइयोंको छोड़कर इस प्रकार केलं जाते हो हमारे साथ वापिस चलो। नहीं तो हम जाकर स्वामीसे कहते हैं । तब वृषभराजको बहुत संकोच हुआ। तथापि बड़ी दीनता से कहने लगा कि राजन् ! माफ करो, मुझे आज बाहर टहलनेके लिये जानेकी इच्छा हुई है । इसलिये मैं जाऊँगा ही । तुम लोग पिताजीको जाकर यह समाचार नहीं देना । यदि तुम्हें कुछ चाहिये तो मुझसे लो । इस प्रकार कहकर हाथ के सुवर्ण कंकणको हाथ लगाने लगा । इतने में दक्षिण व नागर समझ गये कि इसे आज बाहर टहलनेकी बड़ी इच्छा हुई है। उन्होंने प्रकटमें कहा कि अच्छा तुम जाओ, हम नहीं कहेंगे। तुम्हारे कंकणकी हमें जरूरत नहीं । उसे हाथ मत लगाओ। यह कहकर वे दोनों आगे बढ़े। कुमार भी आगे गया । दक्षिण व नागरने विचार किया कि अपन जाकर चक्रवर्तीको समाचार देंगे एवं कुमारकी रक्षा के लिये कुछ सेना भेज देंगे ।
इधर आदिराजको महलमें मालूम हुआ कि वृषभराज आज बाहर अकेला ही टहलने गया है । उसी समय सेबकको घोड़ा लानेके लिये आज्ञा दी और स्वतः अर्ककीतिको निम्नलिखित प्रकार पत्र लिखा -
श्रीमन्महाराजाधिराज आदिचक्रवर्तक आदिपुत्र आदरणीय मूर्ति अर्क कीर्तिकी चरणोंमें! पादसेवक आदिराजका विनयपूर्वक साष्टांगनमस्कारपूर्वक विनंतिविशेषः स्वामिन्!
आज भाई वृषभराज अपने कुछ सेवकोंके साथ अकेला ही बाहर टहलनेके लिये गया है। इसलिये में जाकर उसको ले आऊँगा । आप कोई चिन्ता न करें, आप महलमें स्वस्थ रहें ।
आपका सेवक आविराज