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________________ 'भरतेश वैभव उत्पन्न सूर्यचंद्ररूपी दोनों पुत्रोंको देखिये तो सही ! इस वचन को सुनकर भरतेश्वरको भी हँसी आई 1 हंसते हुए ही उन्होंने उन वेत्रधारियोंको पास बुलाकर इनाम दे दिया। दोनों पुत्रोंको देखकर सभी दरबारी आकृष्ट हए। सब लोग खड़े हो गये । अकंकीति और आदिराजने बैठनेके लिय इशारा किया। भरलेश्वरने वृषभराजसे कहा कि बेटा ! तुम्हारे बड़े भाई आ रहे हैं । खड़े होकर उनका स्वागत करो, उसी समय वृषभराज उठकर खड़ा हो गया। हाथ जोड़नेके लिये कहा तो हाथ जोड़कर नमस्कार किया। अर्ककीति व आदिराजने बहुत बिनयके साथ कहा कि स्वामिन् ! हमें उसके नमस्कार करनेकी क्या जरूरत है ? "यह राजपुत्रोंका लक्षण है ऐसा कहकर भरतेश्वरने समाधान किया। उसके बाद दोनों पुत्रोंने अनेक भंट वगैरह समर्पण कर पिताके चरणोंमें नमस्कार किया एवं सिंहामनके दोनों ओर खड़े हो गये । उस समय भरतेश्वरकी शोभा कुछ और ही थी। एक पुत्र गोदपर दोनों इधर उधरसे खड़े हैं। उनकी शोभाको देखते हए दरबारके. सन लोम खडे हैं । भरतेश्वरने सबको बैठने के लिये कहा। फिर भी सब लोग खडे ही रह गये और कुमारोंकी ओर देखते रहे । भरतेश्वरने अर्ककीतिसे कहा कि बेटा ! सबको बैठनेके लिये तुम बोलो। तब वे बैठेंगे। तब सबको अर्ककीतिने बैठनेके लिये कहा । फिर भी लोग खड़े खड़े ही देखते रहे। फिर "तुम लोगोंको पिताजीकी शपथ है। बैठ जाइये" ऐसा कहनेपर भी लोग बैठे नहीं। वे एकदम दोनों कुमारोंकी सौन्दर्यको देखने में ही मग्न हो गये थे। इतनेमें भरतेश्वरने आदिराजसे कहा कि बेटा ! सबको तुम बैठने के लिये बोलो। तब आदिराजसे कहा कि प्यारे भाइयों ! आप लोग बैठ जाएँ फिर सब लोग खड़े रह गये। फिर "मेरे भाई अर्ककी तिकी शपथ है, आप लोग बैठ जाएँ" ऐसा कहनेपर सब लोग एकदम बैठ गये । अर्ककोतिने गम्भीरताके साथ कहा कि आदिराजको कुछ काम नहीं है, पिताजीके सामने मेरे शपथ खानेकी क्या जरूरत है ! क्या यह योग्य है ? इसपर आदिराज कहने लगा कि भाई ! पिताजी तुम्हारे स्वामी हैं। मेरे लिये तुम ही स्वामी हो, इसमें क्या बिगड़ा? भरतेश्वर भी अपने पुत्रोंके विनयव्यवहारपर प्रसन्न हुये । दरबारी भी उनके जातिविनयको देखकर प्रसन्न होकर प्रशंसा करने लगे । भरतेश्वरने मंत्री और सेनापतिको बुलाकर पूछा कि क्या मेरी उस दिनकी आज्ञाके अनुसार इनको बरावर वेतन दिया जाता है ? स्वामिन् !
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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