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भरतेश वैभव
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वीचबीचमें अनेक मुक्काम करते हुए कई मुक्कामके बाद भरतेश्वर पश्चिम समुद्रके तटपर पहुंचे, वहाँपर जाते ही भागधामर व बरतनुको बुलाया, तत्क्षण वे दोनों ही हाजिर हुए। ममुद्रतटपर खड़े होकर सम्राट्ने कहा कि भागध ! इस समुद्र में प्रभास देव राज्य कर रहा है, वह कैसा है ? हमारे पासमें सीधी तरहसे आयेगा ? या कुछ ढोंग रचकर वादमें वश होगा? बोलो तो सही ! इस बबननो मुनकर मागध कहने लगा कि स्वामिन् ! प्रभाम देव सज्जन है । वह आपके साथ विरोध नहीं कर सकता, हम लोग जाकर उसे आपकी सेवामें उपस्थित करेंगे। इस प्रकार जानेमीमा नांगो लगे, समापसे लगे कि इस कार्यके लिये तुम लोग नहीं जाना। हमारे साथ तुम लोगोंके जो प्रतिनिधि मौजूद हैं उनको इस बार भेजकर देखेंगे, वे किस प्रकार कार्य करके आते हैं। उसी समय ध्रगति और सुरकीतिको बुलाकर यह काम उनको सौंपकर उनको आज्ञा दी गई कि तुम लोग जाकर प्रभास देवको लेकर आना। दोनों देवोंने उस आशाको शिरोधार्य किया और चले गये। ___ मंत्री, सेनापति आदि सबको अपने-अपने स्थानमें भेजकर चक्रवर्ती अपने महल में प्रवेश कर गये । अपनी रानियोंके साथ स्नान, भोजनादि क्रियाओंसे निवृत्त होकर उस दिनको भोग और योगलीलामें चक्रवर्तीने व्यतीत किया। दूसरे दिन प्रातःकाल नित्यक्रियासे निवृत्त होकर दरबार में आकर विराजमान हुए । दरबारमें चारों ओरसे अनेक राजा, राजपुत्र वगैरह विराजमान हैं। गायन करनेवाले भिन्न-भिन्न सुन्दर रांगोम गायन कर रहे हैं। उनमें परमात्मकलाका वर्णन किया जा रहा है । कोई धन्यासि रागमें, कोई भैरवीमें गा रहे हैं। चक्रवर्ती उनको सुन रहे हैं। ___ बाहरसे जिस प्रकार प्रातःकालका धूप दिख रहा हो उसी प्रकार अन्दरसे चक्रवर्तीको आत्मप्रकाश दिख रहा है। कान गान की ओर है. हृदय आरमाकी और है। चर्मदृष्टिसे दरबारको देख रहे हैं । अन्तरदृष्टि से (जानदण्टिगे)निर्मल आत्माको देख रहे हैं । आत्मविज्ञानी का मनोधर्म बहुत ही विचित्र रहता है । उसे कौन जान सकते हैं ? ___ कीचड़में रहनेवाले कमलको सूर्यके प्रति प्रेम रहता है, न कि उस कीचड़पर । इसी प्रकार इस अपवित्र शरीरमें रहनेवाले विवेकी आत्माको अपने आत्मापर ही प्रेम रहता है, न कि उस शरीरपर । भव्योंका