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________________ २३४ भरतेश वैभव अनेक देशके राजागण आकर आनन्द मनाते हैं । उन सब वैभवोंको देखनेका भाग्य मागभ्रामरको प्राप्त हुआ है । पूर्वजन्म में उसने उसके लिये अनेक प्रकारसे पुण्यसंचय किया है । इस प्रकार कहते हुए प्रार्थना करने लगा कि स्वामिन्! मैं बहुत शीघ्र ही अपने नगरको जाकर जातकर्म के लिये योग्य उपहारों को लेकर सेवामें उपस्थित होता हूँ । भरतेश्वर कहने लगे कि वरतनु ! कोई जरूरत नहीं ! तुम यहीं रहो । उपहारोंकी क्या जरूरत है ? अब आगेके कार्य बहुत हैं, उसके लिये तुम्हारी जरूरत है. तुम यहीं रहो। इसके बाद बहुत वैभवके साथ उन बालकको वृषभराज ऐसा नामकरण किया गया। इसी मुक्कामपर आदिराजको भी उपनयन संस्कार कर उसे गुरुकुलमें भेज दिया । वृषभराज कुछ बड़ा हो इसके लिये छह महीने तक वहीं पर मुक्काम किया। बाद में वहाँ सेनाप्रस्थान के लिए प्रस्थानभेरी बजाई गयी. तत्क्षण सेनाने प्रस्थान किया । अर्ककीर्ति व आदिराज विद्यार्थी वेषमें अपने गुरुओं साथ आ रहे हैं। पीछेसे वृधभराजकी सेना आ रही हैं। इधर उधरसे अनेक सुन्दर घोड़ोंपर आरूढ़ होकर राजपुत्र आ रहे हैं। उन सबकी शोभाको देखते हुए भरतेश्वर बहुत आनंदके साथ जा रहे हैं । भरतेश्वर इक्ष्वाकुवंशोत्पन्न हैं। उनके साथ जानेवाले राजपुत्र सबके सब इक्ष्वाकुवंशके नहीं हैं। कोई नाथवंशके हैं। कोई हरिवंशके हैं। कोई उग्रवंशके हैं । कोई कुरुवंशके हैं । उनको देखते हुए भरतेश्वर उनके संबंध में अनेक प्रकारसे विचार कर रहे हैं। यह हरिवंश कुलके लिए तिलक है, यह कुरुवंशके लिए भूषणप्राय है, अमुक नाथवंशावतंस है, अमुक गंभीर है, अमुक पराक्रमी है, अमुक गुणी व सज्जन है, अमुक निरभिमानी है । इत्यादि अनेक प्रकारसे विचार भरतेश्वरके मनमें आ रहे हैं । सूर्य के दर्शनसे कमल, चंद्रके दर्शन से कुमुदिनीपुष्प जिस प्रकार प्रसन्न होते हैं उसी प्रकार भरतेश्वरके दर्शन से वे राजपुत्र अत्यन्त प्रसन्न हो रहे हैं और उनके साथ बहुत विनयके साथ जा रहे हैं। वे बहुत बड़बड़ाते नहीं और कोई प्रकारको अहितचेप्टा भी नहीं करते, वे उत्तम कुल व जाति में उत्पन्न हैं। इतना ही क्यों ? वे भरत चक्रवर्तीके साथ रोजी-बेटी व्यवहारके लिये योग्य प्रशस्त जातिक्षत्रिय वंशज हैं । केवल अंतर है तो इतना ही कि चक्रवर्तीके समान संपत्ति नहीं है । arit किसी भी विषय में कम नहीं हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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