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________________ भरनेश वैभव वह स्वयं बनता है; इसी प्रकार तैजस कार्माण शरीरका फैलाव ही आत्मा के अहितका कारण है। इसलिए सबसे पहले आत्मानुभवनरूपी अग्निसे कार्माण तैजस शरीरके विस्तारको जला देना चाहिए । तब बाह्य औदारिकादि शरीर सब स्वतः ही नष्ट होते हैं और तब ही मुक्ति होती है। इस प्रकार भगवान् आदिनाय का संदेश है । आन्मा और शरीरको भिन्न करके देखनेके लिए उपयुक्त विचार अचूक उपाय हैं। भेदविज्ञानीको ही इस प्रकारके विचार प्राप्त हो सकते हैं, अन्य व्यक्तिको नहीं, इस प्रकार आत्मविनोदी भग्नराजके सामने उन गायकोंने गायन किया। जन लोगोंने अपने गायनमें यह भी कहा कि चाहे गजा हो, चाहे योगी हो, अथवा गहम्य हो, यदि वह इस जिनतत्वको जानकर जिनकी भाकरेंगा तीस भूर्णता मिलेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है । इस प्रकार गम्भीर तत्व पूर्ण गानाको गनकर चक्रवर्ती महान् आनंदित हुआ। सस्मिन भरतश्वरके मुख में हर्षकी रेखायें प्रकट होने लगीं। सम्राट्ने उन लोगोंको बुलाकर अनेक दिव्यवस्त्र पारितोषिक रूप में दिए । इस प्रकार गायन समाप्त हुआ । गायकोंके गायन कौशलसे वह सभा आनदित हुई । महाराजा भरत भी सानंद उम आस्थानमें विराजमान थ । इस जिन कथाको जो कोई सुनते हैं उनके पापका नाश होता है, पुण्यकी वृद्धि होती है, तेज बढ़ता है, तथा भविष्यमें वे कैलास पर्वतपर पहुंचकर भगवान आदिनाथका दर्शन करेंगे। ___यदि इसे प्रेमसे बाँचे, गावे अथवा सुनकर प्रसन्न होवे तो नियमसे स्वर्गीय सम्पत्तिको अनुभव कर आम विदहक्षेत्रमें जा सीमंधर स्वामीका दर्शन अवश्य करेंगे। हे परमात्मन् ! तुम प्रत्येक मनुष्यके इच्छित ध्येयकी सिद्धि करनेवाले हो । योगियोंके अधिनायवा हो अर्थात् योगिगण सदा तुम्हारा हो चितवन किया करते हैं। तुम अन्तरग-बहिरंगसे सुन्दर हो, मर्वधष्ठ हो । ज्ञानके एकाधिपत्यको प्राप्त कर चुके हो, अतएव मेरे अंतरंग में तुम्हारा निवास सदाकाल बना रहे यही मेरी इच्छा है। इसी भावनाका फल है कि भरतेश्वर सदा सर्वदा सन्तोषी बने रहते है। इति आस्थानसंधिः
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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