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________________ २२४ भरतेश वैभव इतनेमें उस बालकके हठको देखकर एक गणबद्ध देवने विक्रियाशक्तिसे उसका अर्ककीतिके समान ही शृंगार किया। तब कहीं आदिराज संतुष्ट हुआ एवं सम्राट्के दाहिनी ओर जाकर अर्काकीतिके समान ही खड़ा हो गया। उस समयकी शोभा कुछ और ही थी। दोनों ओरसे बालसूर्य हैं और बीचमें हिमवान् पर्वत है, अथवा दो हाथीके बच्चोंके बीचमें एक सुन्दर हाथी है । बालकोंकी सुन्दरताको देखकर सब लोग मुग्ध हो गये। सब लोग उठकर खड़े होकर उनकी शोभाको देखने लगे । भरतेश्वर उनकी आतुरताको देखकर कहने लगे कि ये दोनों बालक हैं। उनके खड़े होनेसे आप लोग खड़े क्यों हुये 1 बैठ जाइये। __राजन् ! हम लोग इस भाग्यको और कहाँ देख सकते हैं ? आपके ये दोनों क्या कुमार हैं ? नहीं नहीं ! ये दोनों सुरकुमार हैं। उनके खड़े होनेका प्रकार, बचपनके खेलसे रहित गंभीरता, आविं बातोंको देखनेपर इन्हें बालक कौन कह सकता है ? __आपमें जिस प्रकार गंभीरता है उसी प्रकार आपके पुत्रोंमें भी गंभीरता है, आपका गुण आपके पुत्रोंमें भी उतर गया है । यह साहजिक है। लोकमें बीजके समान अंकुरोत्पत्ति होती है यह कथन जो अनादिसे चला आ रहा है उसकी सत्यता प्रत्यक्षमें आज देखनेके लिये मिली। विशेष क्या? हम विशेष वर्णन करनेके लिये असमर्थ हैं। हम लोग उनको देखते-देखते थक गये। वे भी बहुत देरसे खड़े हैं । उनको बैठनेके लिये आज्ञा दीजियेगा । तब भरतेश्वरने पूछा कि एक घड़ीभर इन दोनोंने खड़े होकर हमारी सेवा की, इसके उपलक्ष्य में इनको क्या वेतन दिया जाय ? मंत्री बोलो ! सेनापति तुम भी कहो। स्वामिन् ! बुद्धिसागरने कहा-बड़े राजकुमारको एक घटिकाको एक करोड़ सुवर्णमुद्राके हिसाबसे देना चाहिये । इसी समय सेनापतिने कहा कि छोटे कुमार श्री आदिराजको अर्धकरोड़ सुवर्ण मुद्राके हिसाबसे देना चाहिमे । सब भरतेश्वरने तथास्तु, कहकर आज्ञा दी कि अभी इनको डेढ़ करोड़ सुवर्ण मुद्राको देनेकी व्यवस्था कर आगे जब कभी वे मेरी सेवा करें तब इसी हिसाबसे उनको वेतन देनेका प्रबन्ध करना। फिर दोनों कुमारोंको बैठनेके लिये आज्ञा दी । दोनों राजपुत्र बैठ गये । वहाँपर उपस्थित सर्व दरबारियोंने उनको नमस्कार किया व अपने-अपने आसनपर विराजमान हुए। इतने में गाजेबाजेका शब्द सुनाई देने लगा।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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