________________
२२६
भरतेश वैभव पर सेनाने मुक्काम किया । पूर्वोक्त प्रकार वहाँपर नगर, घर, महल, जिनमंदिर आदिकी व्यवस्था हो गई थी।
समुद्रतटपर खड़े होकर मागधको बुलाओ ऐसा कहने के पहिले ही मागधामर हाथ जोड़कर सामने आकर खड़ा हो गया। भरतेश्वरने कहा कि मागध ! इस मुमुद्र में वरतनुनामक व्यंतर भेड़ियेक समान रहता है न ? उसे तुम जानते हो ? चुपचाप आकर वह हमारी सेवामें उपस्थित होगा या अभिमानके साथ बैठा रहेगा? बोलो तो सही, यह किस प्रकारके स्वभावका है ? ___मागधामर कहने लगा कि स्वामिन ! लोकमें आपके सामने कौन अभिमान बतला सकते हैं व किसका अभिमान चल सकता है ? इसके अलावा वरतनु राज्जन है। आपकी सेवामें उसे साथमें लेकर कल ही उपस्थित होऊंगा । स्वामिन् ! यह क्या बड़ी बात है।
भरतेश्वर मागधके वचनको सुनकर प्रसन्न हुए, कहने लगे कि तब तो ठीक है, अभी तुम जाओ। कल उसे लेकर आओ। ऐसा कहकर उसे व बाकी लोगोंको भेजकर स्वयं महल में प्रवेशकर गये ।
स्नान. देवाईन, भोजन, सायन प्राति लीलाओंमे उस दिन व्यतीत हुआ। पुनः प्रातःकाल होते ही नित्यक्रियासे निवृत्त होकर दरबारमें आकर विराजमान हुए।
दरबारमें यथाप्रकार सर्व परिवार एकत्रित है। कविगण, विद्वद्गण, वेश्याएँ, गायक बगैरह सभी यथास्थान विराजमान हैं । सभी लोग भरतेश्वरका दर्शनकर अपनेको धन्य समझ रहे थे।
अनेक गायक अनेक रागोंका आश्रयकर गायन कर रहे हैं । कोई उस समय मंगलकौशिक रागका आश्रयकर मंगलशरण लोकोत्तम परमात्माके गुणोंको गा रहे हैं। उसे चक्रवर्ती बहुत प्रेमके साथ सुन रहे हैं। कोई नाराणि, गुर्जरि, सौराष्ट्र आदि रागोंमें आत्मा और कर्मके कार्यकारण संबंधको वर्णन करते हुए गा रहे हैं । उसे चक्रवर्ती सुनकर प्रसन्न हैं। पुण्य गानको बाहरसे सुनते हुए अंदरसे परमलावण्य परमात्माको स्मरण करते हुए, पुण्यमय वातावरणमें राजाग्रगण्य सम्राट विराजमान हैं।
भगवान आदिनाथको स्मरण करते हुए परमात्माको भी भेद विचारसे स्मरण कर रहे हैं। गंधमाधवी नामक दासीने आदिराजको लाकर चक्रवर्तीके हाथमें दे दिया । भरतेश्वरने बहुत आनंदके साथ उस बच्चेको लेकर प्रेमालाप करनेको प्रारंभ किया।