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भरतेश वैभव
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सकता । वह किंकर्तव्यविमूढ़ हुआ । सिर खुजाते हुए कहने लगा कि फिर अब आगे क्या करना चाहिये ? यह तो बोलिये। तब वे कहने लगे कि आगे क्या करना ? यही कि बहुत सन्तोषके साथ जाकर भरतेश चक्रवर्तीके चरणोंकी वन्दना करना । वह आदितीर्थंकर का पुत्र ही तो हैन ? फिर क्या हर्ज है। उसके चरणोंकी बन्दना करनेसे अपनी इज्जत घट नहीं सकती। छहखंड भूमिमें उसके साथ विरोध करनेवाले कौन हैं ? उसके गुणोंपर मुग्ध होकर उसकी बन्दना कौन नहीं करते ? विशेष क्या ? वह तद्भवमोक्षगामी है । इसलिए उसकी वन्दना करनेमें क्या दोष हैं | हम चलें ।
भक्तिसे जो उसे नमस्कार नहीं करते हैं वह कल ही शक्तिसे कराता है । ऐसी अवस्थामें पहिले से जाकर नमस्कार करना यह महायुक्ति है। इस वचनको सुनकर भागधामरने उसकी स्वीकृति दी । हितैषियोंके वचनको स्वीकृत करनेके उपलक्ष्य में उन लोगोने मागधामरकी हृदयसे प्रशंसा की । नीतिमान् राजाकी प्रशंसा कौन नहीं करेगा ?
राजन् ! कल आनेके लिए चक्रवर्तीने आज्ञा दी है, इसलिए कल ही आयेंगे। आज सायंकाल हो गया है। इस प्रकार विचार कर बहुत आनन्दमें मग्न हो गये ।
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इधर भरतेश्वरने जब बाणका प्रयोग किया था, उसके बाद ही उन्होंने अपनी सेनाकी तरफ जानेके लिये तैयारी की । सारथीको आशा देते ही उसने रथको वापिस 'घुमा लिया 2
अनेक प्रकारकी घंटियाँ बज रही हैं। उसकी पताकायें आकाशमें फड़क रही हैं । उस रथको देखनेपर ऐसा मालूम होता है कि शायद मेरुपर्वत ही आ रहा हो । घोड़े भी अब वापिस जानेके कारण जरा तेजी से जाने लगे हैं । उस रथ में वज्रदंड एक तरफ शोभाको प्राप्त हो रहा था । भरतेश्वर अपने दाहिने हाथको टेककर रथपर बहुत वीरता के साथ विराजे हुए हैं । बायें हाथमें पंचरत्न से निर्मित बाण है । उसे देखनेपर ऐसा मालूम होता था कि शायद इन्द्रधनुष ही हैं । उस समय भरतेश्वर भी इन्द्रधनुष सहित हिमालय पर्वतके समान मालूम होते थे । दोनों ओरसे भरतेश्वरको चामर डुल रहे हैं ।
जिस समय भरतेश्वर वापिस लौटे हैं, यह समाचार सेनाको मिला उसके आनंदका पारावार नहीं रहा। सभी वीर हर्षध्वनि करने