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भररोश वैभव लगे। सभी जयजयकार करने लगे। सेनास्थान अब निकट आया। बाणको रथमें ही छोड़ दिया। सारथिको सन्मान करनेके लिये एक रथिकको आज्ञा देकर भरतेश्वर चले गये 1 सामनेसे मंत्री, सेनापति, राजपुत्र आदिने आकर बहुत भक्तिसे नमस्कार किया। इसी प्रकार अन्य बीर, व्यापारी, वेश्यागण, हाथीके सवार, घडमवार वगैरह सब लोग भरतेशको नमस्कार कर रहे थे। कविगण कविता कर रहे थे। स्तुतिपाठक स्तोत्र कर रहे थे। भट्टगण हाथ उठाकर आशीर्वाद देते थे । वेत्रधारीगण सावधान आदि सुन्दर शब्दोंका उच्चारण कर रहे हैं । इन सबको सुनते हुए, देखते हुए भरतेश्वरने अपने महलमें प्रवेश किया। भरतेश्वरकी रानियोंने बहुत भक्तिके साथ प्राणेशकी आरती
तारी । उसके बाद पूज्य भरणाम मस्त रखा। __ रानियोंको भरतेश्वरका वियोग चार दिनसे हुआ है। परन्तु उनको चार युगके समान मालूम हो रहा है । ऐसी अवस्थामें पतिके घर में आनेपर उनको कितना हर्ष हुआ होगा यह पाठक स्वयं विचार करें।
अपनी स्त्रियोंके साथ भरतेश्वरने सायंकालका भोजन किया एवं सायंकालमें करने योग्य जिनवंदनासे निवृत्त होकर महल में बहुत लीलाके साथ रहे । वह रात प्रायः समुद्रप्रयाण व ध्यानकी चमि ही व्यतीत हुई । पतिकी जीतपर उन रानियोंको भी बड़ा हर्ष हुआ ।
पाठक भले न होंगे कि भरतेश्वरने मंत्री, सेनापतिसे कहा था कि मागधामरको जीतनेके संबंधमें आप लोग चिता मत करो । मैं थोड़ासा ध्यान कर लेता हूँ। फिर आप लोग देखियेगा उसे मैं अपने पास मंगालँगा । उसी प्रकार भरतेश्वरको उस व्यंतरको वश करने में सफलता मिली । एक ही बाणके प्रयोगसे उसका गर्व जर्जरित हो गया । क्या इतनी सामर्थ्य उस ध्यानमें है ? हाँ ! है। परंतु आत्मविश्वास होना चाहिये।
भरतेश्वरको भरोसा था कि मैं आत्मबलसे सब कुछ कर सकता हूँ। वे रात दिन इस प्रकार चितवन करते थे कि :
अगणित दुःखोंको देकर सतानेवाली कर्मरूपी बड़े भारी सेनाको केवल एक दृष्टि फेककर ही जीतनकी सामर्थ्य इस परमात्मामें है। इसलिये हे परमात्मन् ! तुम मेरे हृदय में बराबर बने रहो।
हे सिद्धात्मन् ! कामदेवरूपी मदोन्मत्त हाथीके लिये आप सिंहके समान हैं । शानसमुदको उमड़ानेके लिये आप चन्द्र के समान हैं। कर्म